अध्याय : 11 (मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार)
- मानव नेत्र एक अत्यंत मूल्यवान एवं सुग्राही ज्ञानेंद्रिय हैं। यह कैमरे की भांति कार्य करता हैं ।
- हम इस अद्भूत संसार के रंग बिरंगे चीजो को इसी द्वारा देख पाते हैं। इसमें एक क्रिस्टलीय लेंस होता है।
- प्रकाश सुग्राही परदा जिसे रेटिना या दृष्टिपटल कहते हैं इस पर प्रतिबिम्ब बनता हैं ।
- प्रकाश एक पतली झिल्ली से होकर नेत्र में प्रवेश करता हैं। इस झिल्ली को कॉर्निया कहते हैं ।
- कॉर्निया के पीछे एक संरचना होती है। जिसे परितारिका कहते हैं।
- यह पुतली के साइज को नियंत्रित करती है। जबकि पुतली नेत्र में प्रवेश करने वाले प्रकाश को नियंत्रित करता हैं।
- लेंस दूर या नजदीक के सभी प्रकार के वस्तुओं का समायोजन कर वास्तविक तथा उल्टा प्रतिबिम्ब बनाता है।
- अभिनेत्र लेंस की वह क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित कर लेता हैं समंजन क्षमता कहलाती हैं।
- ऐसा नेत्र की वक्रता में परिवर्तन होन पर इसकी फोकस दूरी भी परिवर्तित हो जाती हैं ।
- नेत्र की वक्रता बढ़ने पर फोकस दूरी घट जाती हैं। जब नेत्र की वक्रता घटती हैं तो फोकस दूरी बढ़ जाती है।
- एक स्वस्थ्य व्यक्ति के लिए देखने की न्यूनतम दुरी 25 cm होती है |
- कभी कभी अधिक उम्र के कुछ व्यक्तियों में क्रिस्टलीय लेंस पर एक धुँधली परत चढ़ जाती है। जिससे लेंस दूधिया तथा धुँधली हो जाता है। इस स्थिति को मोतियाबिन्द कहते हैं। इसे शल्य चिकित्सा के द्वारा दूर किया जाता हैं।
- कभी कभी नेत्र धीरे - धीरे अपनी समंजन क्षमता खो देते हैं। ऐसी स्थिति में व्यक्ति वस्तुओं को आराम से सुस्पष्ट नही देख पाते हैं। नेत्र में अपवर्तन दोषो के कारण दृष्टि धुँधली हो जाती हैं। इसे दृष्टि दोष कहते हैं।
- निकट-दृष्टि दोष (मायोपिया) में कोई व्यक्ति निकट की वस्तुओं को स्पष्ट देख तो सकता हैं परन्तु दूर रखी वस्तुओं को वह सुस्पष्ट नहीं देख पाता है। ऐसे व्यक्ति का दूर बिन्दु अनंत पर न होकर नेत्र के पास आ जाता हैं ।
- इसमें प्रतिबिम्ब दृष्टि पटल पर न बनकर दृष्टिपटल के सामने बनता है। इस दोष को किसी उपयुक्त क्षमता के अपसारी (अवतल ) लेंस के उपयोग द्वारा संशोधित किया जा सकता हैं।
- दीर्ध - दृष्टि दोष (हाइपरमायोपिया) में कोई व्यक्ति दूर की वस्तुओं को स्पष्ट देख तो सकता हैं परन्तु निकट रखी वस्तुओं को वह सुस्पष्ट नहीं देख पाता है। ऐसे व्यक्ति का निकट बिन्दु समान्य निकट बिन्दू 25 सेमी पर न होकर दूर हट जाता हैं ।इसमें प्रतिबिम्ब दृष्टिपटल पर न बनकर दृष्टिपटल के पीछे बनता है।
- ऐसे व्यक्ति को स्पष्ट देखने के लिए पठन सामग्री को नेत्र से 25 सेमी से काफी अधिक दूरी पर रखना पडता हैं । इस दोष को किसी उपयुक्त क्षमता के अभिसारी (उतल ) लेंस के उपयोग द्वारा संशोधित किया जा सकता हैं।
- आयु में वृद्धि होने के साथ साथ मानव नेत्र की समंजन - क्षमता घट जाती हैं। अधिकांश व्यक्तियों का का निकट बिन्दु दूर हट जाता हैं इस दोष को जरा दूरदृष्टिता कहते है । इन्है पास की वस्तुए अराम से देखने में कठिनाई होती हैं।
- यह दोष पक्ष्माभी पेशियों के धीरे धीरे दुर्बल होने के कारण तथा क्रिस्टलीय लेंस की लचीलेपन में कमी के कारण उत्पन्न होता हैं ।
- इसे द्विफोकसी लेंस के उपयोग से दूर किया जा सकता है।
- पृथ्वी के उपर वायुमंडल में जैसे - जैसे हम ऊपर जाते हैं, वायु हल्की होती जाती हैं । सुर्योदय होने के पहले एवं सुर्यास्त होने बाद सूर्य से चलने वाली किरणें पूर्ण आंतरिक परावर्तित होकर हमारी आँख तक पहुँच जाती हैं । जब हम इन किरणों को सीधा देखते हैं तो हमें सूर्य की अभासी प्रतिबिम्ब क्षैतिज से उपर दिखाई देता है।
- रेटिना पर बनने वाली प्रतिबिंब की प्रकृति वास्तविक एवं उल्टा होता है |
- सूर्य के प्रकाश के वर्ण निम्न वर्णक्रम में दिखाई देते हैं - बैगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, एवं लाल ।
अध्याय : 11 ( मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार )
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1. नेत्रा की समंजन क्षमता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर : मानव को दूर तथा पास की वस्तुएँ पूर्णत: देखते के लिए नेत्र सुनियोजित करते पड़ते है | इस प्रकार मानव के अभिनेत्र लेंस की वह क्षमता जिससे वह अपनी फोकस दुरी कोण सुनियोजित कर लेता है , समाजंन क्षमता कहलाती है |
2. निकट दृष्टिदोष का कोई व्यक्ति 1.2 m से अधिक दूरी पर रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख सकता। इस दोष को दूर करने वेफ लिए प्रयुक्त संशोधक लेंस किस प्रकार का होना चाहिए?
उत्तर : अवतल लेंस |
3. मानव नेत्रा की सामान्य दृष्टि के लिए दूर बिंदु तथा निकट बिंदु नेत्र से कितनी दूरी पर होते हैं?
उत्तर : सामान्य दृष्टि के लिए दूर बिदुं नेत्र से अनंत दुरी तक तथा निकट बिंदु नेत्र से 25CM की दुरी पर होती है |
4. अंतिम पंक्ति में बैठे किसी विद्यार्थी को श्यामपट्ट पढ़ने में कठिनाई होती है। यह विद्यार्थी किस दृष्टि दोष से पीडि़त है? इसे किस प्रकार संशोधित किया जा सकता है?
उत्तर : इस विद्यार्थी को निकट - दृष्टि दोष है निकट दृष्टि दोष ( मायोपिया ) को किसी उपयुक्त क्षमता के अवतल लेंस द्वारा संशोधित किया जाता है |
अध्याय : 11 (मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार)
1. मानव नेत्र अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी को समायोजित करके विभिन्न दूरियों पर रखी वस्तुओं को फोकसित कर सकता है। ऐसा हो पाने का कारण है |
(a) जरा-दूरद्दष्टिता
(b) समंजन
(c) निकट-दृष्टि
(d) दीर्घ-दृष्टिउत्तर : (b) समंजन |
2. मानव नेत्रा जिस भाग पर किसी वस्तु का प्रतिबिंब बनाते हैं वह है |
(a) कॉर्निया
(b) परितारिका
(c) पुतली
(d) दृष्टिपटलउत्तर : (d) दृष्टिपटल |
3. सामान्य दृष्टि के वयस्क के लिए सुस्पष्ट दर्शन की अल्पतम दूरी होती है, लगभग-
(a) 25 m
(b) 2.5 cm
(c) 25 cm
(d) 2.5mउत्तर : (a) 25 cm |
4. अभिनेत्रा लेंस की फोकस दूरी में परिवर्तन किया जाता है |
(a) पुतली द्वारा
(b) दृष्टिपटल द्वारा
(c) पक्ष्माभी द्वारा
(d) परितारिका द्वाराउत्तर : (c) पक्ष्माभी द्वारा |
5. किसी व्यक्ति को अपनी दूर की दृष्टि को संशोध्ति करने के लिए -5.5 डाइऑप्टर क्षमता के लेंस की आवश्यकता है। अपनी निकट की दृष्टि को संधोजिन करने के लिए उसे +1.5 डाइऑप्टर क्षमता के लेंस की आवश्यकता है। संशोधिन करने के लिए आवश्यक लेंस की फोकस दूरी क्या होगी -
(a) दूर की दृष्टि के लिए |
(b) निकट की दृष्टि के लिए ।
उत्तर :
6. किसी निकट-दृष्टि दोष से पीड़ित व्यक्ति का दूर बिंदु नेत्र के सामने 80 cm दूरी पर है। इस दोष को संशोधित करने के लिए आवश्यक लेंस की प्रकृति तथा क्षमता क्या होगी?
उत्तर :
7. चित्र बनाकर दर्शाइए कि दीर्घ-दृष्टि दोष कैसे संशोधित किया जाता है। एक दीर्घ-दृष्टि दोषयुक्त नेत्र का निकट बिंदु 1 m है। इस दोष को संशोधित करने के लिए आवश्यक लेंस की क्षमता क्या होगी? यह मान लीजिए कि सामान्य नेत्र का निकट बिंदु 25 cm है।
उत्तर :
8. सामान्य नेत्र 25 cm से निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट क्यों नहीं देख पाते?
उत्तर : मानव की सुस्पष्ट देखने की न्यूनतम दुरी 25cm है | 25cm से कम दुरी पर रखी हुई वस्तु से टकरकार प्रतिबिंब हुए प्रकाश की किरणों का दृष्टिपटल पर वस्तु सुस्पष्ट नहीं दिखाई देगी | क्योंकि मानव नेत्र की क्षमता 25cm से बढाई नहीं जा सकता है |
9. जब हम नेत्रा से किसी वस्तु की दूरी को बढ़ा देते हैं तो नेत्र में प्रतिबिंब-दूरी का क्या होता है?
उत्तर : प्रतिबिंब दूरी सदैव एक जैसी रहती है | इसका कारण है कि वस्तु की दुरी मानव नेत्र के लेंस की फोकस दुरी इस प्रकार समायोजित हो जाती है जिससे प्रतिबिंब दृष्टि पटल पर ही बने |
10. तारे क्यों टिमटिमाते हैं?
उत्तर : पृथ्वी के वायुमंडल का अपवर्तनांक निरंतर परिवर्तित होता रहता है | आँखों में प्रवेश करने वाला तारों का प्रकाश निरंतर अपवर्तन के कारण अनियमित रहता है एवं उस झिलमिलाहट के कारण तारे टिमटिमाते हुए प्रतीत होते है |
11. व्याख्या कीजिए कि ग्रह क्यों नहीं टिमटिमाते ?
उत्तर : ग्रहों से पृथ्वी की दुरी काफी कम है | ग्रह प्रकाश के भंडार होते है | जो प्रकाश किरणें ग्रहों से आती है उनमें अपवर्तन नहीं होता है | निकटता व प्रकाश का भंडार होने के साथ - साथ उनकी स्थिति में परिवर्तन नहीं होता अत: वे टिमटिमाते हुए प्रतीत नहीं होते |
12. सूर्योदय के समय सूर्य रक्ताभ क्यों प्रतीत होता है?उत्तर : सूर्योदय अथवा सूर्यास्त के समय सूर्य क्षितिज पर होता है | उस स्थिति में सूर्य की किरणें पहले पृथ्वी के वायुमंडल में वायु की मोटी परतों तक पहुँचती है उसके पश्चात् हमारी आँखों तक | कम तंरग दैधर्य के प्रकाश के अधिकतर भाग का वायुमंडल के कणों द्वारा प्रकीर्णन हो जाता है | इस प्रकार केवल लंबी प्रकाश किरणें (लाल) हमारे नेत्रों में प्रवेश कर पाती है और हमें सूर्य रक्ताभ प्रतीत होती है |
13. किसी अतंरिक्षयात्री को आकाश नीले की अपेक्षा काला क्यों प्रतीत होता है?
उत्तर : अतंरिक्ष पर वायुमंडल ना होने के कारण वहाँ प्रकाश का प्रकीर्णन नहीं होता है, क्योंकि वायु के महीन कण ही प्रकाश को प्रकिर्णित करते है | यही कारण है कि अतंरिक्ष यात्रियों को आकाश काला दिखाई देता है |
प्रश्न : मानव नेत्र का एक सवच्छ एवं नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर :
प्रश्न : मानव नेत्र क्या है ? इसका कार्य विधि एव विभिन्न अंगको का वर्णन करो।
उत्तर : मानव नेत्र एक अत्यंत मूल्यवान एवं सुग्राही ज्ञानेंद्रिय हैं। यह कैमरे की भांति कार्य करता हैं । हम इस अद्भूत संसार के रंग बिरंगे चीजो को इसी द्वारा देख पाते हैं। इसमें एक क्रिस्टलीय लेंस होता है। प्रकाश सुग्राही परदा जिसे रेटिना या दृष्टिपटल कहते हैं इस पर प्रतिबिम्ब बनता हैं । प्रकाश एक पतली झिल्ली से होकर नेत्र में प्रवेश करता हैं। इस झिल्ली को कॉर्निया कहते हैं । कॉर्निया के पीछे एक संरचना होती है। जिसे परितारिका कहते हैं। यह पुतली के साइज को नियंत्रित करती है। जबकि पुतली नेत्र में प्रवेश करने वाले प्रकाश को नियंत्रित करता हैं। लेंस दूर या नजदीक के सभी प्रकार के वस्तुओं का समायोजन कर वास्तविक तथा उल्टा प्रतिबिम्ब बनाता है।
प्रश्न : नेत्र की समंजन क्षमता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर : अभिनेत्र लेंस की वह क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित कर लेता हैं समंजन क्षमता कहलाती हैं। ऐसा नेत्र की वक्रता में परिवर्तन होन पर इसकी फोकस दूरी भी परिवर्तित हो जाती हैं । नेत्र की वक्रता बढ़ने पर फोकस दूरी घट जाती हैं। जब नेत्र की वक्रता घटती हैं तो फोकस दूरी बढ़ जाती है।
प्रश्न : किसी वस्तु को देखने के लिए न्युनतम दूरी कितनी होती हैं ?
उत्तर : 25 सेंटीमीटर ।
प्रश्न : मोतियाबिन्द क्या है ? इसे कैसे दूर किया जाता हैं ?
उत्तर : कभी कभी अधिक उम्र के कुछ व्यक्तियों में क्रिस्टलीय लेंस पर एक धँुधली परत चढ़ जाती है। जिससे लेंस दूधिया तथा धुँधली हो जाता है। इस स्थिति को मातियाबिन्द कहते हैं। इसे शल्य चिकित्सा के द्वारा दूर किया जाता हैं।
प्रश्न : दृष्टि दोष क्या हैं ? यह कितने प्रकार के होते है ?
उत्तर : कभी कभी नेत्र धीरे - धीरे अपनी समंजन क्षमता खो देते हैं। ऐसी स्थिति में व्यक्ति वस्तुओं को आराम से सुस्पष्ट नही देख पाते हैं। नेत्र में अपवर्तन दोषो के कारण दृष्टि धुँधली हो जाती हैं। इसे दृष्टि दोष कहते हैं।
यह समान्यतः तीन प्रकार के होते हैं।
1. निकट - दृष्टि दोष (मायोपिया)
2. दीर्ध - दृष्टि दोष (हाइपरमायोपिया)
3. जरा - दूरदृष्टिता (प्रेसबॉयोपिया)
प्रश्न : निकट - दृष्टि दोष (मायोपिया) किस प्रकार का दृष्टि दोष हैं ? इसे कैसे दूर किया जाता हैं ?
उत्तर : निकट-दृष्टि दोष (मायोपिया) में कोई व्यक्ति निकट की वस्तुओं को स्पष्ट देख तो सकता हैं परन्तु दूर रखी वस्तुओं को वह सुस्पष्ट नहीं देख पाता है। ऐसे व्यक्ति का दूर बिन्दु अनंत पर न होकर नेत्र के पास आ जाता हैं । इसमें प्रतिबिम्ब दृष्टि पटल पर न बनकर दृष्टिपटल के सामने बनता है। इस दोष को किसी उपयुक्त क्षमता के अपसारी (अवतल ) लेंस के उपयोग द्वारा संशोधित किया जा सकता हैं।
प्रश्न : दीर्ध - दृष्टि दोष (हाइपरमायोपिया) क्या हैं ? इसे कैसे दूर किया जाता है
उत्तर : दीर्ध - दृष्टि दोष (हाइपरमायोपिया) में कोई व्यक्ति दूर की वस्तुओं को स्पष्ट देख तो सकता हैं परन्तु निकट रखी वस्तुओं को वह सुस्पष्ट नहीं देख पाता है। ऐसे व्यक्ति का निकट बिन्दु समान्य निकट बिन्दू 25 सेमी पर न होकर दूर हट जाता हैं ।इसमें प्रतिबिम्ब दृष्टिपटल पर न बनकर दृष्टिपटल के पीछे बनता है। ऐसे व्यक्ति को स्पष्ट देखने के लिए पठन सामग्री को नेत्र से 25 सेमी से काफी अधिक दूरी पर रखना पडता हैं । इस दोष को किसी उपयुक्त क्षमता के अभिसारी (उतल ) लेंस के उपयोग द्वारा संशोधित किया जा सकता हैं।
प्रश्न : दीर्ध - दृष्टि दोष (हाइपरमायोपिया) के उत्पन्न होने के क्या कारण ह0ैं ?
उत्तर : दीर्ध - दृष्टि दोष (हाइपरमायोपिया) के उत्पन्न होने के निम्न कारण हैं ।
1. अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी का अत्यधिक बढ़ जाना।
2. नेत्र गोलक का छोटा हो जाना ।
प्रश्न : निकट - दृष्टि दोष (मायोपिया) के उत्पन्न होने के क्या कारण हैं ?
उत्तर : निकट - दृष्टि दोष (मायोपिया)के उत्पन्न होने के निम्न कारण हैं ।
1. अभिनेत्र लेंस की वक्रता का अत्यधिक होना ।
2. नेत्र गोलक का लंबास हो जाना ।
प्रश्न : जरा - दूरदृष्टिता क्या हैं ? इस दोष के क्या कारण हैं ? इसे कैसे दूर किया जाता हैं ।
उत्तर : आयु में वृद्धि होने के साथ साथ मानव नेत्र की समंजन - क्षमता घट जाती हैं। अधिकांश व्यक्तियों का का निकट बिन्दु दूर हट जाता हैं इस दोष को जरा दूरदृष्टिता कहते है । इन्है पास की वस्तुए अराम से देखने में कठिनाई होती हैं। यह दोष पक्ष्माभी पेशियों के धीरे धीरे दुर्बल होने के कारण तथा क्रिस्टलीय लेंस की लचीलेपन में कमी के कारण उत्पन्न होता हैं । इसे द्विफोकसी लेंस के उपयोग से दूर किया जा सकता है।
प्रश्न : द्विफोकसी लेंस का उपयोग नेत्र के किस दोष के लिए उपयोग किया जाता हैं ?
उत्तर : द्विफोकसी लेंस में उतल तथा अवतल दोनो प्रकार के लेंस होते है। जरा दूरदृष्टिता दोष के रोगी के लिए उपयोग किया जाता हैं। जिन्हे निकट तथा दूर दृष्टि दोष दोनो से पिडित होंते हैं।
प्रश्न : पक्ष्माभी पेशियों का प्रमुख कार्य क्या हैं ?
उत्तर : ये पेशियाँ अभिनेत्र लेंस की वक्रता और उसके सम्बन्ध में फोकस दूरी को परिवर्तित करते हैं तथा विभिन्न वस्तुओं को समंजित करने में नेत्र की सहायता करते हैं ।
प्रश्न : निकट बिन्दु क्या हैं ?
उत्तर : वह न्युनतम दूरी, जिस पर रखी वस्तु को बिना किसी प्रयास के असानी से देखा जा सकता हैं । निकट बिन्दु कहलाता हैं ।
प्रश्न : दूर बिन्दु क्या हैं ?
उत्तर : एक समान्य आँख की देखने की अधिकतम दूर बिन्दु जहाँ स्थित किसी वस्तु को देखा जा सकता हैं। दूर बिन्दु कहलाता हैं । यह बिन्दु अनंत पर स्थित होती हैं ।
प्रश्न : पुतली से नेत्र में प्रवेश करने वाले प्रकाश को पुतली कैसे नियंत्रित करता हैं ?
उत्तर : मन्द प्रकाश में पुतली बडी तथा तेज प्रकाश में पुतली छोटी हो जाती हैं ।
प्रश्न : पारितारिका का कार्य लिखो।
उत्तर : यह पुतली के आकार को नियंत्रित करता हैं ।
प्रश्न : प्रकाश का विक्षेपण क्या हैं ?
उत्तर : प्रकाश के अवयवी वर्णो में विभाजन को प्रकाश का विक्षेपण कहते हैं ।
प्रश्न : प्रिज्म कोण किसे कहते हैं ?
उत्तर : प्रिजम के दो पार्श्व फलको के बीच के कोण को प्रिज्म कोण कहते हैं ।
प्रश्न : इन्द्रधनुष कैसे बनता हैं ?
उत्तर : वायुमंउल में विद्यमान जल की सूक्ष्म बूँदों द्वारा सूय्र के प्रकाश के अपवर्तन के कारण इन्द्रधनुष बनता हैं ।
प्रश्न : सूर्य के प्रकाश के वर्णक्रम के वर्ण जिस क्रम में दिखाइ देते है उस क्रम में उनका नाम लिखो।
उत्तर : बैगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, एवं लाल ।
प्रश्न : दृष्टि निर्बध क्या हैं ?
उत्तर : रेटिना पर बना प्रतिबिम्ब वस्तुएँ के हटाए जाने के 1/10 सेकेण्ड बाद तक स्थिर रहता हैं । इसे दृष्अि निर्बध कहते हैं ।
प्रश्न : दो आखें की क्या उपयोगिता हैं ?
उत्तर : दो आखो से देखने की निम्न उपयोगिता हैं ।
1. वस्तु की दूरी का ठीक अंदाजा लगाया जा सकता हैं ।
2. दोनो आँखें एक दूसरे को सेकेण्ड के एक भाग के लिए अराम देते हैं ।
प्रश्न : सुर्योदय होने के पहले एवं सुयास्त होने बाद भी हमें सूर्य क्यों दिखाइ देता हैं ?
उत्तर : पृथ्वी के उपर वायुमंडल में जैसे - जैसे हम ऊपर जाते हैं, वायु हल्की होती जाती हैं । सुर्योदय होने के पहले एवं सुर्यास्त होने बाद सूर्य से चलने वाली किरणें पूर्ण आंतरिक परावर्तित होकर हमारी आँख तक पहुँच जाती हैं ।़ जब हम इन किरणों को सीधा देखते हैं तो हमें सूर्य की अभासी प्रतिबिम्ब क्षैतिज से उपर दिखाई देता है।
प्रश्न : क्या कारण हैं कि सूर्योदय से पहले ही और सूर्यास्त के बाद तक हमे सूर्य दिखाई देता हैं ?
उत्तर : वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण सूर्योदय से पहले ही और सूर्यास्त के बाद तक हमे दरअसल सूर्य का अभासी प्रतिबिम्ब दिखाई देता रहता है। इसलिए सूर्योदय से 2 मीनट पहले ही और सूर्यास्त के 2 मीनट बाद तक हमे सूर्य दिखाई देता हैं।
प्रश्न : आकाश का रंग नीला प्रतीत होता है ?
उत्तर : आकाश का रंग नीला प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण नीला प्रतीत होता है।
प्रश्न : रेटिना पर बनने वाले प्रतिबिम्ब की प्रकृति क्या होती है ?
उत्तर : रेटिना पर बनने वाले प्रतिबिम्ब की प्रकृति वास्तविक तथा उल्टा होती है।
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