रवींद्रनाथ ठाकुर की "आत्मत्राण " नामक कविता से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य को किसी भी परिस्थिति में अपने आत्मबल को कमजोर नहीं होने देना चाहिए । विपत्ति ही न आए ये अनुनय करने की अपेक्षा मनुष्य को चाहिए कि वह ईश्वर से विपत्तियों से जूझने की शक्ति की मांग हेतु प्रार्थना करें ।
सुख में वह ईश्वर को न भूलें तथा दुख कितना भी बड़ा क्यों न आए ,मनुष्य ईश्वर के प्रति अपनी श्रद्धा को न डिगने दे। वस्तुत: कवि के अनुसार परिस्थिति चाहे कैसी भी हो ,मनुष्य दुख ताप से व्यथित न होकर निर्भीकता से स्वयं के प्रयासों द्वारा उनका सामना करें अर्थात अपनी मुसीबतों का हल स्वयं करे | किसी अन्य की सहायता न लें |
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