मुख्य-बिन्दुएँ :
- प्रकृति से प्राप्त विभिन्न वस्तुएँ जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने में प्रयुक्त होती हैं, जिनको बनाने के लिए प्रौद्योगिकी उपलब्ध हैं संसाधन कहलाते हैं।
- जीव मंडल से प्राप्त संसाधन जैव संसाधन कहलाते हैं।
- निर्जीव वस्तुओं द्वारा निर्मित संसाधन, अजैव संसाधन कहलाते हैं।
- वे संसाधन जिन्हें विभिन्न भौतिक, रासायनिक अथवा यांत्रिक प्रक्रियाओं के द्वारा पुनः
उपयोगी बनाया जा सकता है, नवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं। - वे संसाधन जिन्हे एक बार उपयोग में लाने के बाद पुनः उपयोग में नहीं लाया जा सकता, इनका निर्माण तथा विकास एक लंबे भूवैज्ञानिक अंतराल में हुआ है, अनवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं।
- निजी स्वामित्व वाले व्यक्तिगत संसाधन कहलाते हैं।
- वे संसाधन जिनका उपयोग समुदाय के सभी लोग करते हैं, सामुदायिक संसाधन कहलाते हैं।
- किसी भी प्रकार के संसाधन जो राष्ट्र की भौगोलिक सीमा के भीतर मौजूद हो, राष्ट्रीय संसाधन होते हैं। व्यक्तिगत, सामुदायिक संसाधनों को राष्ट्र हित में राष्ट्रीय सरकार द्वारा अधिगृहीत किया जा सकता है।
- वे संसाधन जो किसी क्षेत्र में विद्यमान तो हैं, परंतु इनका उपयोग नहीं हो रहा है, संभावी संसाधन कहलाते हैं।
- वे संसाधन जिनका सर्वेक्षण किया जा चुका है, इनके उपयोग की गुणवत्ता तथा मात्रा निर्धारित हो चुकी है, उन्हे विकसित संसाधन कहते हैं।
- प्रकृति में उपलब्ध होने वाले वे पदार्थ जो मानव आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं।
लेकिन तकनीकी ज्ञान न होने या पूरी तरह विकसित न होने के कारण पहुँच के बाहर हैं, भंडार कहलाते हैं। - सतत पोषणीय विकास - इस तरीके से विकास किया जाए जिससे पर्यावरण को हानि न पहुँचे तथा वर्तमान में किए जा रहे विकास के द्वारा भावी पीढि़यों की आवश्यकताओं की अवहेलना न हो।
- संसाधन नियोजन - ऐसे उपाय अथवा तकनीक जिसके द्वारा संसाधनों का उचित प्रयोग सुनिश्चित किया जा सके।
- संसाधन संरक्षण - संसाधनों का न्यायसंगत तथा योजनाबद्ध प्रयोग, जिससे संसाधनों का अपव्यय न हो।
- भूमि निम्नीकरण - विभिन्न प्राकृतिक तथा मानवीय क्रियाकलापों द्वारा मृदा का कृषि के योग्य न रह पाना।
- निवल अथवा शुद्ध बोया गया क्षेत्र - वह क्षेत्र जहाँ वर्ष में एक बार या एक से अधिक बार कृषि की गई हो।
- कुल बोया गया क्षेत्र - शुद्ध बोए गए क्षेत्र में परती भूमि को जोड़ना।
- परती भूमि - वह भूखंड जिस पर कुछ समय खेती नहीं की जाती और खाली छोड़ दिया जाता है।
- बंजर भूमि - वह भूखंड जिस पर कोई पैदावार नहीं होती तथा जो पहाड़ी, रेतीली अथवा दलदली होती है।
- लैटेराइट मृदा - अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में मिट्अी की ऊपरी परत के तेजी से कटाव से निर्मित मृदा।
- मृदा अपरदन - प्राकृतिक कारकों द्वारा मृदा का एक स्थान से हटना।
- उत्खात भूमि - प्रवाहित जल तथा पवनों के द्वारा किए जाने वाले मृदा अपरदन से उत्खात भूमि का निर्माण।
- अभ्यास : 1 (संसाधन एवं विकास)
Q1. लौह अयस्क किस प्रकार का संसाधन है ?
(a) नवीकरण योग्य
(b) प्रवाह
(c) जैव
(d) अनवीकरण योग्य
उत्तर :- (d) अनवीकरण योग्य |
Q2. ज्वारीय ऊर्जा निम्नलिखित में से किस प्रकार का संसाधन है ?
(a) पुनः पूर्ति योग्य
(b) अजैव
(c) मानवकृत
(d) अचक्रिय
उत्तर :- (b) अजैव |
Q3. पंजाब में भूमि निम्नीकरण का निम्नलिखित में से मुख्य कारण क्या है ?
(a) गहन खेती
(b) अधिक सिंचाई
(c) वनोंमुलन
(d) अति पशुचारण
उत्तर :- (b) अधिक सिंचाई |
Q4. निम्नलिखित में से किस प्रांत में सीढ़ीदार (सोपानी) खेती की जाती है ?
(a) पंजाब
(b) उत्तर-प्रदेश के मैदान
(c) हरियाणा
(d) उत्तराचंल
उत्तर :- (d) उत्तराचंल |
Q5. इनमें से किस राज्य में काली मृदा पाई जाती है ?
(a) जम्मू-कश्मीर
(b) राजस्थान
(c) गुजरात
(d) झारखंड
उत्तर :- (c) गुजरात |
Q2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए ?
(1) तीन राज्यों के नाम बताएँ काली मृदा पाई जाती है | इस पर मुख्य रूप से कौन सी फसल उगाई जाती है ?
उत्तर :- महाराष्ट्र , गुजरात एवं मध्यप्रदेश में काली मृदा पायी जाती है | इस पर ज्यादातर कपास की खेती की जाती है |
(2) पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं पर किस प्रकार की मृदा पाई जाती है | इस पर मुख्य रूप से फसल उगाई जाती है ?
उत्तर :- (a) चूंकि ज्यादातर जलोढ़ मृदाएँ पोटाश , फास्फोरस एवं चुने से निर्मित होती है , अत: ये बहुत उपजाऊ होती है |
(b) इस मृदा में रेत , सिल्ट व मृतिका अलग - अलग अनुपातों में पाये जाते है |
(c) बहुत उपजाऊ होने के कारण इन मृदाओं पर सामान्यत : गहन कृषि की होती है |
(3) पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन की रोकथाम के लिए क्या कदम उठाने चाहिए ?
उत्तर :- पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपक्षय की रोकथाम के लिए निम्न कदम उठाए जाने चाहिए :-
(a) ढाल वाली जमीन पर समोच्च रेखाओं के समानातर हल चलने से ढाल की गति कम होती है | इसलिए ऐसे क्षेत्र में समोच्च जुताई को प्राथमिकता डी जाए |
(b) ढालू जमीन पर सोपान बनाए जाने चाहिए |
(c) फसलों के मध्य में घास की पट्टियाँ उगाकर भी मृदा अपक्षय कम किया जा सकता है , जिसे पट्टी कृषि कहते है |
(4) जैव और संसाधन क्या होते है ? कुछ उदाहरण दें |
उत्तर :- जैव संसाधन :- वे संसाधन जो जैव मंडल s उत्पन्न होते है , जैव संसाधन कहलाते है इनमें जीवन पाया जाता है | जैसे :- मानव , वनस्पति जगत , मत्स्य जीवन आदि |
अजैव संसाधन :- ऐसे संसाधन जो निर्जीव वस्तुओं से निर्मित होते है अजैव संसाधन कहलाते है |जैसे :- जल , पवन , जीवाश्म ईंधन आदि |
Q3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए |
(1) भारत में भूमि उपयोग प्रारुप का वर्णन करें | वर्ष 1960-61 से वन के अंतर्गत क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण वृद्धि नहीं हुई , इसका क्या कारण है ?
उत्तर :- भारत में भूमि इस्तेमाल का निम्नलिखित प्रारूप पाया जाता है :-
(a) भारत के कुल सूचित इलाकों के केवल 54% हिस्से पर ही खेती की जाती है | यदि देखा जाए तो बोये गए इलाकेला % भी सामान्यतया विभिन्न राज्यों में अलग - अलग है | उदहारण के तौर पर पंजाब और हरियाणा में जहाँ 80% भूमि पर खेती की जाती है , वहीँ अरुणाचल - प्रदेश , मणिपुर एवं मिजोरम जैसे राज्यों में मात्र 10% भूमि पर ही खेती की जाती है |
(b) भारत का संपूर्ण भौगोलिक क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग कि.मी है लेकिन इसके 93% भाग के ही भू - प्रयोग आंकड़े उपलब्ध है |
(2) प्रौद्योगिक और आर्थिक विकास के कारण संसाधानों का अधिक उपभोग कैसे हुआ है ?
उत्तर :-प्रौद्योगिकी और आर्थिक विकास के चलते संसाधनों का अति इस्तेमाल हुआ है जिसके निम्नलिखित कारण है :-
(a) आर्थिक विकास कई प्रकार के नये संसाधनों का दोहन करने के लिए बाध्य करता है जिससे उनका अति दिहन होता है |
(b) जब किसी देश में प्रौद्योगिकी के विकास के परिणामस्वरूप आर्थिक विकास होता है तो वहाँ के लोगों के जीवन स्तर में वृद्धि होती है | इसके परिणामस्वरूप मानवीय आवश्यकताएँ बढ़ती है और संसाधानों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल होता है |
(c) चूंकि प्रौद्योगिकी और आर्थिक विकास आपस में अन्त: संबधित है , अत : इसके फलस्वरूप संसाधनों का अति इस्तेमाल होता है |
संसाधन एवं विकास
1. संसाधन :- पर्यावरण में उपसिथत प्रत्येक वह जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करती है संसाधन कहलाते है |
2. मानव संसाधन :- मानव भी एक संसाधन है क्योंकि मानव संव्य संसाधनों का महत्वपूर्ण हिस्सा है | मानव पर्यावरण में उपसिथत वस्तुओं को संसाधान में परिर्वतित करते है जौर उन्हें प्रयोग करते है |
3. संसाधनों का वर्गाकरण :- संसाधनों का वर्गाकरण के प्रकार से के गए है
(1) उत्पति के आधार पर :- जैव और अजैव |
(2) समाप्यता के आधार पर :- नवीकरण योग्य और अनवीकरण योग्य |
(3) स्वामित्व के आधार पर :- व्यकितगत , समुदायिक , . राष्ट्रीय और अतंराष्ट्रीय |
(4) विकास के स्तर के आधार पर संभावी , विक्सित , भंडार और संचित कोष |
4. संसाधनों के प्रकार :-
(1) जैव संसाधन
(2) अजैव संसाधन
(3) नवीकरण योग्य संसाधन
(4) अनैकरण योग्य संसाधन
(5) व्यकितगत संसाधन
(6) सामुदायिक समित्व वाले संसाधन
(7) राष्ट्रीय संसाधन
(8) संभावी संसाधन
(9) विक्सित संसाधन
(10) भंडार
(11) संचित कोष
5. उत्पति के आधार पर संसाधनों की व्याख्या :-
(1) जैव संसाधन :- वे संसाधन जो जीव मंडल से जीवन लिए जाते है तथा जो सजीव होते जिनमें जीवन है वे जैव संसाधन कहलाते है जैसे :- मनुष्य , वनस्पति जात , प्राणिजात , मत्स्य जेवण , पशुधन आदि|
(2) अजैव संसाधन :- वे संसाधन जो निर्जाव होते है जिसमे जीवन नहीं होता वे अजीव संसाधन कहलाते है जैसे चट्टने और धातुएँ |
6. समाप्यता के आधार पर संसाधनों की व्याख्या :-
(1) नवीकरण योग्य :- वे संसाधन जिन्हें पुन: उत्पन्न किया जा सकता है और ये कभी खत्म नहीं होते | ये संसाधन प्राकृतिक रूप से प्राप्त होते है | जैसे :- सौर ऊर्जा , पवन ऊर्जा , जल , वन व वन्य जीवन |
(2) अनवीकरण योग्य :- वे संसाधन जिन्हें बनने में लाखों - करोड़ों वर्ष लगते है ये दुबारा उत्पन्न नहीं किए जा सकते | कभी भी खत्म हो सकते है जैसे धातुएँ तथा जीवाश्म ईंधन |
7. संसाधनों के आर्थिक उपयोग के कारण पैदा हुई समस्याएँ :-
(1) संसाधनों के अधिक उपयोग के कारण संसाधनों कम हो गए है |
(2) संसाधनों की कमी के कारण कुछ लोग संसाधन कम हो गए है तथा कुछ नहीं |
(3) संसाधनों के अधिक उपयोग के कारण प्राकृतिक संकट पैदा हो गए है जैसे प्रदुषण , ओजोन परत अवक्षय , भूमि निम्निकरण आदि |
(4) मानव संसाधनों पर पूरी तरह निर्भर हो परेशानियों का सामना करना पद रहा है |
(5) संसाधन का सामना करना पडा रहा है |
(6) संसाधन जैसे धातुएँ जीवाश्म ईंधन इनका उपयोग उघोग में होता है इनके कमी के कारण पदार्थों की कीमतें बढती जा रही है
(7) यदि संसाधनों का किसी तरह उपयोग होता रहा तो भविष्य की पीढ़ियों के लिए संसाधन नहीं बचेगें |
8. सतत् पोषणीय विकास :- वे विकास जो बिना पर्यावरण को नुकसान पहुचाएँ तो जिससे पर्यावरण सुरक्षित रहे तथा वर्तमान विकास भविष्य की पीढ़ियों की आवश्कता के अनुसार किया जाए |
9. एजेंडा 21 :- यह एक घोषण है जिसे 1992 में ब्राजील के शहर रियों डी जेनेरो सम्मेलन में राष्ट्रअध्यक्षों द्वारा स्वीकृति प्रदान की थी |
10. एजेंडा 21 का उद्देश्य :- इसका निम्नलिखित उद्देश्य है :-
(1) सतत् पोषणीय विकास को बढाया देना |
(2) यह एक कार्यसूचि है जिसका उद्देश्य है सामान हितों , पारस्परिक आवश्यक एवं सम्मलित जिम्मेदारियों के अनुसार विश्व सहयोग के द्वारा पर्यावरण हानि , गरीबी और रोगों से निपटाना |
(3) इसका मुख्य उद्देश्य है की सभी स्थानीय निकाय अपना एजेंडा तैयार करे |
11. संसाधन नियोजन की आवश्कता :- संसाधन नियोजन आवश्यक है क्योंकि सभी स्थानों पर अलग - अलग प्रकार के संसाधन प्राय: जाते है :- कहीं पर कुल संसाधन अधिक मात्रा में पाए जाते ही कही कुछ संसाधन पे नहीं जाता है यदि संसाधनों का नियोजन नहीं पे जनर वाले संसाधन उपलब्ध नहीं जाता है यादि संसाधनों का नियोजन नहीं होगा तो कुछ स्थानों के लोगों का वहाँ पर नहीं पाए जाने वाले संसाधन उपलब्ध नहीं हो पाएँगे | यह हमारी भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी आवश्यक है |
12. संसाधन नियोजन के चरण :- भारत में संसाधन नियोजन एक जटिल प्रक्रिया है | इसके निम्नलिखित चरण है :-
(1) देश के विभिन्न देशों में संसाधनों की पहचान करना और उनकी तालिका बनाना |
(2) क्षेत्रीय सर्वेक्षण , मानचित्र और संसाधनों की गुणवता को मापना |
(3) संसाधन विकास योजनाएँ लागु करने के लिए उपयुक्त प्रोघोगिकी , कौशल और संस्थागत नियोजन ढाँचा यियर करना |
(4) संसाधन विकास योजनाएँ और राष्ट्रीय विकास योजना में समन्वय स्थापित करना |
13. संसाधन संरक्षण के आवश्यकता :-
(1) संसाधन मनुष्य के जीवन यापन के लिए अति आवश्यक है संसाधन हमारी आवश्यकताओं को पूरा करते है |
(2) संसाधन जीवन की गुणवता बनाए रखते है इसलिए इनका संरक्षण आवश्यकता है |
(3) देश के रक्षा के लिए संसाधनों की आवश्यकता है क्योंकि देश की सुरक्षा के लिए बनाए जाने वाली सामग्री संसाधनों के प्रयोग से बनाई जाती है |
(4) कंपनियों के विकास के लिए जीवाश्म ईंधन आवश्यकता है यदि वह खत्म हो गया हो कंपनियों का काम रूक जाएगा |
(5) परिवहन के लिए संसाधन संरक्षण की आवश्यकता है |
(6) संसाधन किसी भी तरह के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है |
(7) संसाधनों अधिक उपयोग के कारण सामाजिक आर्थिक तथा पर्यावरणीय समस्याएँ पैदा हो सकती है इन समस्याएँ से बचने के लिए संसाधन संरक्षण आवश्यक है |
14. संसाधनों में प्रोघोगिकी और संस्थाओ का महत्व :- किसी भी देश के विकास में संसाधन तभी योगदान दे सकते है जब वह उपयुक्त प्रोघोगिकी विकास और संसाधन परिर्वतन किए जाएँ | यदि कोई देश या राज्य संसाधन समुद्ध है परन्तु वहाँ उपयुक्त प्रोघोगिकी की नहीं है तो वह संसाधन विकास में योगदान नहीं दे पाएगा जैसे - झारखंड , अरुणाचल - प्रदेश |
15. भू - संसाधन :- भूमि एक बहुत महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है | प्राकृतिक वनस्पति , वन्य जीवन , मानव जीवन आर्थिक क्रियाएँ , पैवाहन तथा संचार व्यवस्थाएँ भूमि पर ही आधारित है भूमि एक सीमित संसाधन है |
16. भू संसाधन का उपयोग :- भू संसाधनों का उपयोग निम्नलिखित उद्देश्य से किया जाता है
(1) वन |
(2) कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि |
(क) बंजर तथा कृषि अयोग्य भूमि |
(ख) गैर - कृषि प्रयोजनों में उगाई गई भूमि जैसे :- इमारत्ब , सड़क , उघोग आदि
(3) परती भूमि के अतिरिक्त अन्य कृषि अयोग्य भूमि |
(क) स्थायी चारागाह तथा अन्य गोचर भूमि |
(ख) विविध वृक्षों वृक्ष फसलों तथा उपतनों के अधीन भूमि |
(ग) कृषि योग्य बंजर भूमि जहाँ पाँच से अधिक वर्षा से खेतीं न की गई हो |
परती भूमि
(क) वर्तमान पार्टी (जहाँ एक कृषि वर्ष या उससे कम समय से खेती न की गई हो)
(ख) वर्तमान परती भूमि के अतिरिक्त अन्य पार्टी भूमि (जहाँ 1 से 5 कृषि ऐ खेती न की है हो)|
(5) शुद्ध बोया गया क्षेत्र
(क) एक कृषिं वर्ष में एक बार से अधिक बोए गए क्षेत्र को शुद्ध |
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