वर्ग संघर्ष के कारकों की व्याख्या कीजिए, कार्ल मार्क्स का वर्ग संघर्ष का सिद्धांत (Karl Marx’s Theory of Class Struggle)
कार्ल मार्क्स का सामाजिक परिवर्तन का सिद्धांत वर्ग संघर्ष के सिद्धांत के नाम से जाना जाता है मार्क्स के अनुसार सामाजिक परिवर्तन का मूल कारण उत्पादन प्रणाली (Mode of Production) में परिवर्तन है| उत्पादन प्रणाली को वे समाज की आर्थिक संरचना (Economic Structure) कहते हैं| उनके अनुसार जब उत्पादन प्रणाली में परिवर्तन होता है, तो समाज में भी परिवर्तन दिखाई देता है| इस तरह मार्क्स अपने सम्पूर्ण सिद्धांत को आर्थिक आधार पर केंद्रित करते हैं तथा भौतिकवाद को ही सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं|
मार्क्स के उत्पादन प्रणाली को निम्न 3 सूत्रों में समझा जा सकता है –
(1) उत्पादन के साधन = कच्चा माल, पूँजी, प्रौद्योगिकी आदि|
(2) उत्पादन शक्ति = उत्पादन के साधन + श्रम शक्ति
(3) उत्पादन प्रणाली = उत्पादन की शक्ति + उत्पादन संबंध
मार्क्स के अनुसार परिवर्तन की शुरुआत उत्पादन के साधनो (Means of Production) में परिवर्तन से होती है, इस साधन में प्रौद्योगिकी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है| प्रौद्योगिकी में परिवर्तन से श्रम शक्ति (Labour Power) में परिवर्तन होता है, अर्थात् श्रमिकों की कुशलता बढ़ती है एवं बौद्धिक विकास होता है| उत्पादन के साधन एवं श्रम शक्ति में परिवर्तन के साथ ही उत्पादन शक्ति (Forces of production) परिवर्तित हो जाती है| उत्पादन शक्ति में परिवर्तन, मालिक एवं सर्वहारा (मजदूर) के बीच उत्पादन संबंधों (Relation of Production) को परिवर्तित करने को मजबूर करता है, जिससे उत्पादन प्रणाली भी परिवर्तित हो जाती है एवं समाज में परिवर्तन दिखाई देने लगता है|
मार्क्स उत्पादन प्रणाली के आधार पर समाज के ऐतिहासिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं का उल्लेख करते हैं-
प्रथम अवस्था आदिम साम्यवाद (Primitive Communism) की है, जिसमें लोग फल तथा शिकार पर अपना जीवन निर्वाह करते थे| उस समय उत्पादन के साधनो पर व्यक्तिगत अधिकार का अभाव था| इसलिए न तो कोई वर्ग था, न ही किसी प्रकार का शोषण|
द्वितीय अवस्था प्राचीन समाज (Ancient Society) की है जिसमें दास प्रथा का जन्म हुआ तथा व्यक्तिगत संपत्ति का अविर्भाव हुआ| जिससे वर्ग विभेद आरम्भ हुआ|
तृतीय अवस्था सामंतवाद युग (Feudal Society) की है, जिसमें सत्ता पर राजाओं का अधिकार था, जिन्होंने अपनी सम्पूर्ण भूमि सामन्तों में विभाजित कर दी| सामन्त (Lord) का पूर्ण अधिकार भूमिहीन कृषकों पर होता था, जिन्हें मार्क्स अर्ध-दास (Serf) कहते हैं|
चतुर्थ अवस्था पूँजीवाद (Capitalist Society) की है, जो औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप अस्तित्व में आयी है| इसमें उत्पादन अत्यधिक हुआ, किंतु बेकारी फैलने के कारण वेतन की दर घटी और पूंजीपतियों के द्वारा शोषण भी बढ़ने लगा| इस युग में पूंजीपति एवं सर्वहारा वर्ग अस्तित्व में आया| यह युग वर्तमान समय का है|
उल्लेखनीय है कि मार्क्स ने अतीत से वर्तमान तक के चार समाजों के साथ भविष्य के दो समाजों – समाजवाद (Socialism) एवं साम्यवाद (Communism) की भी चर्चा की|
मार्क्स के अनुसार यदि ऐतिहासिक रूप से देखें तो जैसे-जैसे उत्पादन की प्रणाली बदलती गई वैसे-वैसे समाज बदलें| परन्तु द्विवर्गीय व्यवस्था बनी रही जिसमें एक वर्ग शोषक (Haves) था एवं दूसरा शोषित (Have nots)|
मार्क्स ने पूंजीवादी समाज से पूर्व के समाज के दास एवं कृषि श्रमिकों को स्वयं में वर्ग (Class in Itself) कहा, क्योंकि उनकी आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थितियाँ तो समान थी, परन्तु उनमे चेतना का अभाव था| इसलिए ये असंगठित थे एवं वर्ग विरोध को वर्ग-संघर्ष (Class Conflict) तक नहीं ले जा सके| किंतु मार्क्स कहते हैं कि पूंजीवाद समाज में संघर्ष होगा, क्योंकि यह समाज कई अर्थों में अपने अतीत के समाज से भिन्न है|
पूंजीवाद समाज में उत्पादन लाभ के लिए होता है, जबकि अतीत के समाज में उपभोग के लिए था| साथ ही इस समाज में उत्पादन का मशीनीकरण हो चुका है जिससे श्रमिक वर्ग के महत्त्व में कमी आई है| इस समाज में पूंजीपतियों एवं सर्वहारा के बीच नकद का संबंध है, जिससे दोनों वर्गो में किसी तरह का भावनात्मक, सांस्कृतिक एवं परंपरागत जैसे संबंध नहीं है|
उद्योगपतियों में आपसी प्रतिस्पर्धा तथा लाभ प्राप्त करने की मनोवृत्ति के कारण श्रमिक हाशिए पर आ गया है| अधिक मशीनीकरण के कारण इस युग में श्रम का महत्व कम हो गया है जिससे श्रमिकों में अलगाव (Alienation) की भावना उत्पन्न हो रही है|
मार्क्स कहते हैं कि जैसे-जैसे पूंजीपति अर्थव्यवस्था पर अपनी पकड़ बनाता जाएगा, वैसे-वैसे अधो-संरचना (जैसे धर्म, कानून आदि) को भी उतना ही अधिक अपने नियंत्रण में करता जाएगा| इसके बदौलत पूंजीपति जो चाहेगा वही करेगा और श्रमिकों की सुनवाई नहीं होगी|
मार्क्स कहते हैं यह स्थिति श्रमिकों में चेतना उत्पन्न करेगी| चूँकि श्रमिकों के शोषण का स्वरूप, जीवन शैली एवं समस्याए जैसी हैं, अतः उनके चेतना का स्तर भी समान होगा| मार्क्स के अनुसार अस्तित्व से चेतना का निर्माण होता है अतः यह चेतना श्रमिकों को ध्रुवीकृत होने का आधार का प्रदान करेगी तथा इस युग में वंचित वर्ग स्वयं में वर्ग (Class in itself) से स्वयं के लिए वर्ग (Class for Itself) में परिवर्तित हो जाएगा, तथा उसे प्राप्त करने के लिए संगठित एवं सक्रिय होगा| इस ध्रुवीकरण के बाद समाज दो महान वर्गों बुर्जवा एवं सर्वहारा में विभाजित हो जाएगा और अन्ततः खूनी संघर्ष एवं क्रांति होगी| जिसमें विजय सर्वहारा की होगी|
मार्क्स कहते हैं कि रक्त रंजित क्रांति के बाद कुछ समय के लिए सर्वहारा की तानाशाही स्थापित होगी| जिसे वे समाजवाद (Socialism) कहते हैं| अंततः सर्वहारा अपनी सत्ता छोड़कर जन-सामान्य में शामिल हो जाएगा| यह साम्यवादी (Communism) समाज होगा| मार्क्स के अनुसार इस युग में परिवार तथा जनता की अफीम ‘धर्म’ का निषेध हो जाएगा| इस युग में न तो वर्ग होगा और न ही निजी संपत्ति| सबको अपनी रूचि के अनुसार कार्य मिलेगा तथा आवश्यकता के अनुसार पूर्ति (वेतन)| पुलिस, प्रशासन, सेना आदि संस्थाएँ समाप्त हो जाएंगी एवं सामाजिक परिवर्तन का चक्र सदैव के लिए रुक जाएगा|
आलोचना (Criticism)
(1) मैक्स वेबर ने मार्क्स के सिद्धांत को दो आधारों पर गलत पाया, पहला – वर्ग सभी युगों में नहीं पाया जाता रहा है| दूसरा – आधुनिक पूंजीवादी यूरोप में चार वर्ग दिखाई देते हैं, साथ ही सर्वहारा की क्रांति न होकर श्रमिक संघों का निर्माण एवं सामूहिक सौदेबाजी होगी|
(2) राल्फ डाहरेनडॉर्फ (Ralph Dahrendorf) मानते हैं कि व्यावसायिक गतिशीलता के कारण वर्ग निष्ठा कमजोर होगी, जिससे वर्ग ध्रुवीकरण की संभावना दिखाई नहीं देती|
(3) एंथोनी गिडेन्स (Anthony Giddens) तो साम्यवाद के विचार को ही स्वप्नदर्शी मानते हैं|
(4) मार्क्स पर आर्थिक विश्लेषणवादी होने का आरोप लगता है, जो सामाजिक परिवर्तन के अन्य कारकों की उपेक्षा करते हैं| जबकि अन्य कारक भी निश्चित रूप से समाज को प्रभावित करते हैं|
निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि मार्क्स का विश्लेषण दोष रहित नहीं है, फिर भी पूंजीवाद पर लगाम लगाने एवं उसे मानवतावादी स्वरूप प्रदान करने में मार्क्स के विचारों की महत्वपूर्ण भूमिका है|
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