Explainthe emergencv power of the president of India' (भारत के राष्ट्रपति कि संकट कालीन शक्तियों का वर्णन करें)

 Explainthe emergencv power of the president of India' (भारत के राष्ट्रपति कि संकट कालीन शक्तियों का वर्णन करें)

भारतीय संविधान में कहा गया है कि भारत का एक राष्ट्रपति होगा संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी तथा वह इसका प्रयोग संविधान के अनुसार स्वयं तथा अधीनस्थ पदाधिकारियों द्वारा करेगा इस प्रकार संघीय कार्यपालिका में राष्ट्रपति और मंत्रिपरिषद होगा राष्ट्रपति कार्यपालिका का औपचारिक प्रधान होगा और मंत्रिपरिषद कार्यपालिका की वास्तविक प्रधान।

                              राष्ट्रपति के कार्य और शक्तियां

         भारत के राष्ट्रपति को विभिन्न प्रकार के महत्वपूर्ण कार्य करने होते हैं और इस कारण भारत के राष्ट्रपति को अनेक प्रकार की शक्तियां प्रदान की गई है अध्ययन की सुविधा के लिए राष्ट्रपति की समस्त शक्तियां को प्राथमिक रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है 
    1. सामान्य कालीन शक्तियां
    2. संकटकालीन शक्तियां 
                     

                                              2 संकटकालीन शक्तियां अथवा अधिकार.   

                संकट की स्थिति का सामना करने के लिए संविधान द्वारा राष्ट्रपति को विशेष शक्तियां प्रदान की गई है राष्ट्रपति को यह संकटकालीन शक्तियां या दूसरे शब्दों में संविधान के संकटकालीन प्रवाधान अभी हाल के ही वर्षों में बहुत अधिक संशोधन परिवर्तन के विषय रहे हैं 1975 में लागू आपातकाल में 42वें संशोधन के आधार पर संकट कालीन प्रावधानों को और अधिक कठोर बनाया गया लेकिन आपातकाल में संकटकालीन प्रधानों का जिस प्रकार से दुरुपयोग किया गया उससे इन परिधानों के विरुद्ध प्रतिक्रियाएं उत्पन्न होना नितांत स्वभाविक था इसके अतिरिक्त 1970 में सत्तारूढ़ जनता पार्टी संविधान के संकटकालीन परिधानों में ऐसे परिवर्तन के लिए वचनबद्ध थी जिससे वर्तमान या भविष्य के शासक वर्ग द्वारा इन प्रधानों का दुरुपयोग न किया जा सके 1975 76 में इन संकटकालीन परिधानों के दुरुपयोग को दृष्टि में रखते हुए 44वें संवैधानिक संशोधन 1979 द्वारा ऐसे व्यवस्थाएं की गई है और इन संविधान संशोधनों के बाद वर्तमान समय में संविधान के संकटकालीन प्रधानों की स्थिति निम्न प्रकार है
1. युद्ध बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति से संबंधित संकटकालीन व्यवस्था अनुच्छेद 352 ------  मूल संविधान के अनुच्छेद 352 में व्यवस्था थी कि यदि राष्ट्रपति को अनुभव हो की युद्ध बाहरी आक्रमण या आंतरिक अशांति के कारण भारत या उसके किसी भाग की शांति या व्यवस्था नष्ट होने का भय है तो अथा अर्थ रूप से इस प्रकार की परिस्थिति उत्पन्न होने की आशंका होने पर राष्ट्रपति संकटकालीन व्यवस्था की घोषणा कर सकता है संसद की स्वीकृति के बिना भी यह दो महा तक लागू रहती है और संस्कृत के स्वीकृति हो जाने पर शासन इसे जब तक लागू करना चाहता रख सकता है 44 वें 44 वें संवैधानिक संशोधन के बाद वर्तमान समय में इसका संदर्भ में व्यक्त निम्न प्रकार है प्रथम इस प्रकार का आपातकालीन युद्ध बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह अथवा इस प्रकार की आशंका होने पर की घोषणा किया जा सकेगा केवल आंतरिक शांति अशांति के नाम पर आपातकाल घोषित नहीं किया जा सकता है द्वितीय राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 352 के अंतर्गत आपातकाल की घोषणा तभी की जा सकेगी जब मंत्रिमंडल लिखित रूप से राष्ट्रपति को ऐसा परामर्श प्रदेश तृतीय घोषणा के 1 माह के अंदर सांसद के विशेष बहुमत से इसकी स्वीकृति अवश्य होगी और इसे लागू करने के लिए प्रतीक्षा महा बाद स्वीकृति आवश्यक होती है चतुर्थ लोक सभा में उपस्थित एवं मतदान में भाग लेने सदस्यों के साधारण बहुमत से आपातकाल की घोषणा समाप्त की जा सकती है आपातकाल पर विचार हेतु लोक सभा की बैठक लोकसभा के एक बटे 10 सदस्य की मांग पर अनिवार्य रूप से बुलाई जाएगी राष्ट्रपति द्वारा की गई संकटकालीन घोषणा को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 352 के अधीन संकट की घोषणा पूरे देश के किसी एक या कुछ भागों के लिए की जा सकती है
इस घोषणा के लागू करने के समय में 19 पर अनुच्छेद द्वारा नागरिकों को प्रथम स्वतंत्रता है स्थापित की जा सकती है मूल्य संविधान मैं व्यवस्था की गई कि संकटकाल के समय नागरिक अपनी मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालय की शरण नहीं ले सकेंगे लेकिन 44 वें संवैधानिक संशोधन के आधार पर व्यवस्था की गई है कि आपातकाल में भी व्यक्ति के जीवन और शारीरिक स्वाधीनता के अधिकार को समाप्त किया सीमित नहीं किया जा सकेगा लेकिन इसके अतिरिक्त अन्य अधिकारियों की रक्षा के लिए नागरिक न्यायालय की शरण नहीं ले सकेंगे राष्ट्रपति संकट काल के समय संसद को राज्य सूची के विषय पर भी कानून बनाने का अधिकार दे सकता है राष्ट्रपति केंद्र और राज्य के बीच में के वितरण भी में भी परिवर्तन कर सकता है
अनुच्छेद 352 के अंतर्गत संकट काल की घोषणा की गई है 1962 में भारत चीन और 1971 में भारत और पाकिस्तान का आक्रमण होने की स्थिति में तथा तीसरी बार 1975 में प्रथम संकटकालीन घोषणा 10 जनवरी 1975 को समाप्त की गई दूसरी और तीसरी संकटकालीन घोषणा 1977 में समाप्त की गई इस प्रकार वर्तमान समय मे कोई संकट कालिन लागू नहीं है
2. राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल होने से उत्पन्न संकटकालीन अवस्था- संविधान के द्वारा संघीय सरकारों को यह उत्तर दायित्व सौंपा गया है कि वह देखें कि प्रत्येक राज्य की सरकार संविधान के उपबंधों के अनुसार चलती चलती जा रही है अनुच्छेद 356 के अनुसार राष्ट्रपति को राज्यपाल के प्रतिवेदन पर या अन्य किसी प्रकार के से समाधान हो जाए कि ऐसा ऐसी परिस्थिति पैदा हो गई है कि राज्य का शासन संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है तो वह संकट काल की घोषणा कर कर सकता है
संसद के द्वारा एक बार प्रस्ताव पास कर राज्य में छह माह के लिए राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है 44 वें संवैधानिक संसोधन से पूर्व राज्य में राष्ट्रपति शासन की अधिकतम अवधि 3 वर्ष थी लेकिन अब इस व्यवस्था में यह परिवर्तन किया गया है कि राज्य में राष्ट्रपति शासन के 1 वर्ष की की अवधि के बाद इसे और अधिक समय के लिए जारी रखने का प्रस्ताव संसद द्वारा तभी पारित किया जा सकेगा जबकि इस प्रकार का प्रस्ताव पारित किए जाने के समय अनुच्छेद 352 के अंतर्गत संकटकाल लागू हो और चुनाव आयोग यह प्रमाणित कर दे की वर्तमान समय में राज्य में चुनाव कराना संभव नहीं है किसी भी परिस्थिति में 3 वर्ष के बाद राष्ट्रपति शासन लागू नहीं कि नहीं रखा जा सकेगा
इस परिस्थिति में राष्ट्रपति यह घोषणा कर सकता है कि राज्य की कानून निर्णय की शक्ति का प्रयोग केंद्र संसद करेगी राष्ट्रपति राज्यपाल सहित राज्य के किसी भी अधिकारी की शक्ति को अपने हाथ में ले सकता है वह घोषणा के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उच्च न्यायालय की शक्ति को छोड़कर अन्य समस्त शक्ति अपने हाथ में ले सकता है जब लोकसभा की  बैठक की नहीं हो रही हो उस समय राष्ट्रपति राज्य की संचित निधि में से एक का आदेश दे सकता है और उसके द्वारा अध्यादेश भी जारी किया जा सकता है संकट की अवधि में राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 19 के द्वारा प्रदत्त स्वतंत्रताओं पर रोक लगा सकता है और उसके द्वारा संवैधानिक उपचारों के अधिकार को भी स्थापित किया जा सकता है
संविधान लागू किए जाने के समय से लेकर अब तक 100 से अधिक उदाहरणों में अनुच्छेद 356 के अधीन संकटकाल घोषित किया जा चुका है पिछले वर्षों में पंजाब आज शाम और जम्मू कश्मीर तथा उत्तराखंड आदि राज्यों में लंबे समय तक राष्ट्रपति शासन लागू रहा
3. वित्तीय संकट- अनुच्छेद 307 के अनुसार जब राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए कि ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो गई है कि जिनसे भारत में वित्तीय स्थायित्व या शाख को खतरा है तो वह वित्तीय संकट की घोषणा कर सकता है ऐसी घोषणा के लिए भी व अवधि निर्धारित है जो प्रथम प्रकार के संकट की घोषणा के लिए है
इस संकट की अवधि में राष्ट्रपति को अधिकार होगा कि वह आर्थिक दृष्टिकोण से किसी भी राज्य सरकार को आदेश दे सकता है संग तथा राज्य सरकार के अधिकारियों के वेतन में जिनमें उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी शामिल होंगे आवश्यकता कमी की जा सकती है राष्ट्रपति राज्य सरकारों को इस बात के लिए बाध्य कर सकता है कि राज्य के समस्त वित्तीय विधायक उसकी स्वीकृति के लिए प्रस्तुत किए जाएं संघ की कार्यकारिणी राज्य की कार्यकारणी को शासन संबंधित आवश्यक आदेश दे सकती है और राष्ट्रपति केंद्र तथा राज्य के बीच धन संबंधित बंटवारे में आवश्यक परिवर्तन कर सकता है
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