सुरक्षा के पारंपरिक तरीके कौन-कौन से हैं? इनमें से प्रत्येक की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।

सुरक्षा के पारंपरिक तरीके कौन-कौन से हैं? इनमें से प्रत्येक की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए। Ans. प्रस्तावना-सुरक्षा की परंपरागत धारणा में स्वीकार किया जाता है कि हिंसा का दस्तेमाल यथासंभव सीमित होना चाहिए। युद्ध के लक्ष्य और साधन दोनों से इसका संबंध है। 'न्याय यद' की यूरोपीय परंपरा का ही यह परवर्ती विस्तार है कि आज लगभग पुरा विश्व मानता है कि किसी देश को युद्ध उचित कारणों यानी आत्म रक्षा अथवा दूसरों को जनसंहार से बचाने के लिए करना चाहिए। इस दृष्टिकोण के अनुसार किसी युद्ध में युद्ध-साधनों का सीमित इस्तेमाल होना माहिए। यद्धरत् सेना को चाहिए कि वह संघर्षविमुख शत्र, निहत्थे व्यक्ति अथवा आत्मसमर्पण वाले शत्र को न मारे। सेना को उतने ही बल का प्रयोग करना चाहिए जितना आत्मरक्षा के लिए जर जरूरी हो और उसे एक सीमा तक ही हिंसा का सहारा लेना चाहिए। बल प्रयोग तभी किया जाय जब बाकी उपाय असफल हो गए हों। रीके या विधियाँ-सुरक्षा की परंपरागत धारणा इस संभावना से इनकार नहीं करती कि देशों के बीच एक न एक रूप में सहयोग हो। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है-निरस्त्रीकरण, अस्त्र-नियंत्रण तथा विश्वास की बहाली। निरस्तीकरण-निरस्त्रीकरण की माँग होती है कि सभी राज्य चाहे उनका आकार ताकत और प्रभाव कुछ भी हो, कुछ खास किस्म के हथियारों से बाज आये। उदाहरण के लिए, 1972 की जैविक हथियार संधि (बायोलॉजिकल वीपन्स कंवेशन-BWC) तथा 1992 की रासायनिक हथियार संधि (केमिकल वीपन्स कन्वेशन-CWC) में ऐसे हथियारों को बनाना और रखना प्रतिबंधित कर दिया गया है। पहली संधि पर 100 से ज्यादा देशों ने हस्ताक्षर किए हैं और इनमें से 14 को छोड़कर शेष ने दूसरी संधि पर भी हस्ताक्षर किए। इन दोनों संधियों पर दस्तखत करने वालों में सभी महाशक्तियाँ शामिल हैं लेकिन महाशक्तियाँ-अमेरिका तथा सोवियत संघ सामहिक संहार के अस्त्र यानी परमाण्विक हथियार का विकल्प नहीं छोड़ना चाहती थी, इसलिए दोनों ने अस्त्र-नियंत्रण का सहारा लिया। अस्त्र नियंत्रण-अस्त्र नियंत्रण के अंतर्गत हथियारों को विकसित करने अथवा उनको हासिल करने के संबंध में कुछ कायदे-कानूनों का पालन करना पड़ता है। सन् 1972 की एटा बैलिस्टिक मिसाइल संधि (ABM) ने अमेरिका और सोवियत संघ को बैलिस्टिक मिसाइलों को रक्षा कवच के रूप में इस्तेमाल करने से रोका। ऐसे प्रक्षेपास्त्रों से हमले की शुरूआत की जा सकती थी। संधि में दोनों देशों की सीमित संख्या में ऐसी रक्षा प्रणाली तैनात करने की अनुमति थी लेकिन इस संधि ने दोनों देशों को ऐसी रक्षा प्रणाली के व्यापक उत्पादन से रोक दिया। (ii) संधियाँ- अमेरिका और सोवियत संघ ने अस्त्र नियंत्रण की कई अन्य संधियों पर हस्ताक्षर किए जिसमें सामरिक अस्त्र परिसीमन संधि-2 (स्ट्रैटजिक आर्स लिमिटेशन ट्रीटी- -SALT II) और सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि (स्ट्रेटजिक आर्स रिडक्शन ट्रीटी-START) शामिल हैं। परमाणु अप्रसार संधि (न्यूक्लियर नॉन प्रोलिफेरेशन ट्रीटी-NPT, 1968) भी एक अर्थ में अस्त्र नियंत्रण संधि ही थी क्योंकि इसने परमाण्विक हथियारों के उपार्जन को कायदे-कानून के दायरे में ला खड़ा किया। जिन देशों ने सन् 1967 से पहले परमाणु हथियार बना लिये थे या उनका परीक्षण कर लिया था उन्हें इस संधि के अंतर्गत इन हथियारों को रखने की अनुमति दी गई। जो देश सन् 1967 तक ऐसा नहीं कर पाये थे उन्हें ऐसे हथियारों को हासिल करने के अधिकार से वंचित किया गया। परमाणु अप्रसार संधि ने परमाण्विक आयुधों को समाप्त तो नहीं किया लेकिन इन्हें हासिल कर सकने वाले देशों की संख्या जरूर कम की। (iv) विश्वास की बहाली-सुरक्षा की पारंपरिक धारणा में यह बात भी मानी गई है कि विश्वास बहाली के उपायों से देशों के बीच हिंसाचार कम किया जा सकता है। विश्वास बहाली की प्रक्रिया में सैन्य टकराव और प्रतिद्वन्द्वित वाले देश सूचनाओं तथा विचारों के नियमित आदानप्रदान का फैसला करते हैं। दो देश एक-दूसरे को अपने फौजी मकसद तथा एक हद तक अपनी सैन्य योजनाओं के बारे में बताते हैं। ऐसा करके ये देश अपने प्रतिद्वन्द्वी को इस बात का आश्वासन देते हैं कि उनकी तरफ से औचक हमले की योजना नहीं बनायी जा रही। देश एक-दूसरे को यह भी बताते हैं कि इन बलों को कहाँ तैनात किया जा रहा है।


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