अध्याय-समीक्षा
- जीव अपने स्पीशीज के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जनन करते हैं |
- जनन करने वाले जीव संतति का सृजन करते हैं जो बहुत सीमा तक उनके समान होते हैं |
- जीव को संतति उत्पन्न करने के लिए अत्यधिक उर्जा व्यय करनी पड़ती हैं |
- आधारभूत स्तर पर जनन जीव के अभिकल्प का ब्लूप्रिंट तैयार करता है |
- शरीर का अभिकल्प समान होने के लिए उनका ब्लूप्रिंट भी समान होना चाहिए |
- कोशिका के केन्द्रक में पाए जाने वाले गुणसूत्रों के डी.एन.ए. के अणुओं में आनुवंशिक गुणों का सन्देश होता है जो जनक से संतति पीढ़ी में जाता है |
- कोशिका के केन्द्रक के डी. एन. ए. में प्रोटीन संशलेषण हेतु सुचना निहित होती है |
- यदि DNA में निहित सूचनाएं (सन्देश) भिन्न होने की अवस्था में बनने वाली प्रोटीन भी भिन्न होगी |
- विभिन्न प्रोटीन के कारण शारीरिक अभिकल्प में भी विविधता आ जाती है |
- जनन की मूल घटना डी. एन. ए. (DNA ) की प्रतिकृति (copy) बनाना है |
- डी. एन. ए. (DNA ) की प्रतिकृतियाँ जनन कोशिकाओं में बनता है |
- संतति कोशिकाएँ समान होते हुए भी किसी न किसी रूप में एक दुसरे से भिन्न होती हैं | जनन में होने वाली यह विभिन्नताएँ जैव-विकास का आधार हैं |
- विभिन्नताएँ स्पीशीज की उत्तरजीविता बनाए रखने में उपयोगी हैं |
- अपनी जनन क्षमता का उपयोग कर जीवों की समष्टि पारितंत्र में स्थान ग्रहण करते हैं |
- जीव की शारीरिक संरचना एवं डिजाईन ही जीव को विशिष्ट स्थान के योग्य बनाती है |
- जीवों में जनन की दो विधियाँ है - (i) लैंगिक जनन (ii) अलैंगिक जनन |
- लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न जीवों में विभिन्नताएँ सबसे अधिक पायीं जाती हैं |
- एकल जीवों में जनन अलैंगिक जनन के द्वारा होता है जबकि युगल जीव जिनमें नर एवं मादा दोनों होते है उनमें जनन प्रक्रिया लैंगिक जनन के द्वारा होता है |
- अलैंगिक जनन प्रक्रिया में जीव विखंडन, खंडन, पुनर्जनन, मुकुलन, कायिक प्रवर्धन तथा बीजाणु समासंघ द्वारा जनन करते है |
- एककोशिक जीवों में विखंडन द्वरा नए जीवों की उत्पति होती है |
- विखंडन विधि दो प्रकार की होती है - (i) द्विखंडन (ii) बहुखंडन
- अमीबा में जनन द्विखंडन विधि के द्वारा होता है |
- प्लैज्मोडियम जैसे जीव में जनन बहुखंडन के द्वारा होता है |
- सरल संरचना वाले बहुकोशिक जीवों में जनन खंडन विधि के द्वारा होता है |
- प्लेनेरिया में जनन पुनरुदभवन विधि के द्वारा होता है |
- हाईड्रा एवं यीस्ट जैसे जीवों में पुनर्जनन की क्षमता वाली कुछ विशेष कोशिकाएँ होती है जहाँ से मुकुल बन जाता है और यही से एक नए जीव की उत्पत्ति होती है, जिसे मुकुलन कहा जाता है |
- पौधों में बहुत से ऐसे एकल पौधे हैं जिनमें जनन के लिए विशेष कोशिकाएँ नहीं होती है ऐसे पौधे अपने कायिक भाग जैसे जड़, तना, तथा पत्तियों का उपयोग जनन के लिए करते हैं |
- कायिक प्रवर्धन द्वारा उगाये गए पौधों में विभिन्नताएँ कम पाई जाती है एवं अनुवांशिक रूप से जनक पौधे के समान होते हैं |
- उत्तक संवर्धन तकनीक का उपयोग समान्यत: सजावटी पौधों के संवर्धन में किया जाता है |
- नर में शुक्राणु एवं मादा में अंडाणु जनन कोशिकाएँ होती हैं |
- डी. एन. ए. प्रतिकृति बनने के समय इनमें कुछ त्रुटियाँ रह जाती हैं यही परिणामी त्रुटियाँ जीव की समष्टि में विभिन्नताओं का स्रोत हैं |
- प्रत्येक डी.एन.ए. (DNA) प्रतिकृति में नयी विभिन्नताओं के साथ-साथ पूर्व पीढ़ियों की विभिन्नताएँ भी संग्रहित होती रहती है |
- जनन प्रक्रिया में जब दो जीव भाग लेते हैं तो विभिन्नताओं की संभावना बढ़ जाती है |
- लैंगिक जनन में दो भिन्न जीवों से प्राप्त डी.एन.ए. (DNA) को समाहित किया जाता है |
- लैंगिक जनन करने वाले जीवों के विशिष्ट अंगों (जनन अंगों) में कुछ विशेष प्रकार की कोशिकाओं की परत होती है जिनमें जीव की कायिक कोशिकाओं की अपेक्षा गुणसूत्रों की संख्या आधी होती है तथा डी.एन.ए. (DNA) की मात्रा भी आधी होती है | यें दो भिन्न जीवों की युग्मक कोशिकाएँ होती है जो लैंगिक जनन में युग्मन द्वारा युग्मनज (जायगोट) बनाती हैं जो संतति में गुणसूत्रों की संख्या एवं डी.एन.ए. (DNA) की मात्रा को पुनर्स्थापित करती हैं |
- गतिशील जनन-कोशिका को नर युग्मक कहते है तथा जिस जनन कोशिका में भोजन का भंडार संचित रहता है, उसे मादा युग्मक कहते है |
- पुष्पी पौधों में पुंकेसर नर जननांग होता है जो परागकण बनाता है जबकि स्त्रीकेसर मादा जननांग होता है | इसके तीन भाग होते है (i) वर्तिकाग्र (ii) वर्तिका (iii) अंडाशय |
- जिस पुष्प में केवल स्त्रीकेसर अथवा पुंकेसर ही उपस्थित रहता है तो ऐसे पुष्प एकलिंगी कहलाता है | जैसे - पपीता, तरबूज आदि |
- जब पुष्प में स्त्रीकेसर एवं पुंकेसर दो उपस्थिति हो तो यह पुष्प उभयलिंगी पुष्प कहलाता है | जैसे- गुडहल एवं सरसों आदि |
- पुंकेसर के एक अन्य भाग जिसे परागकोष कहते है उसी पर परागकण चिपके रहते हैं |
- परागकोशों से परागकणों का वर्तिकार्ग्र पर पहुँचने की प्रक्रिया को परागण कहते है |
- यदि परागकणों का स्थानांतरण उसी पुष्प के परागकोशों से उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर होता है तो ऐसे परागण को स्वपरागण कहते है |
- जब किसी अन्य पुष्प का परागकण का किसी दुसरे पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरण होता है तो ऐसे परागण को परापरागण कहते है |
- परापरागण में एक पुष्प के परागकण दुसरे पुष्प तक स्थानांतरण वायु, जल, अथवा प्राणी जैसे वाहकों के द्वारा संपन्न होता है |
- परागित परागकण परागण के बाद वर्तिका से होते हुए बीजांड तक पहुँचती है जहाँ अंडाशय में उपस्थित मादा युग्मक से संलयन होता है, इस प्रक्रिया को निषेचन कहते है |
- बीजांड में भ्रूण विकसित होता है, जो बाद में बीज में परिवर्तित हो जाता है |
- बीज का नए पौधे में विकसित होने की प्रक्रिया को अंकुरण कहते है |
- रजोदर्शन से लेकर रजोनिवृति तक की अवधि स्त्रियों में जनन काल कहलाता है |
- किशोरावस्था की वह अवधि जिसमें जनन-ऊत्तक परिपक्व (mature) होना प्रारंभ करते है यौवनारंभ कहलाता है |
पाठगत-प्रश्न : 8 ( जीव जनन कैसे करते है )
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प्रश्न1: डी.एन.ए. प्रतिकृति का प्रजनन में क्या महत्त्व है ?
उत्तर: जनन की मूल घटना डी.एन.ए. की प्रतिकृति बनाना है | डी.एन.ए. की प्रतिकृति बनाने के लिए कोशिकाएँ विभिन्न रासायनिक क्रियाओं का उपयोग करती है | जनन कोशिका में इस प्रकार डी.एन.ए. की दो प्रतिकृतियाँ बनती है | जनन के दौरान डी.एन.ए. प्रतिकृति का जीव की शारीरिक संरचना एवं डिजाईन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जो जीवों के विशिष्ट स्थान में रहने के योग्य बनाती है |
प्रश्न2: जीवों में विभिन्नता स्पीशीज के लिए तो लाभदायक है परन्तु व्यष्टि के लिए आवश्यक नहीं है, क्यों ?
उत्तर: जीवों में विभिन्नता स्पीशीज के लिए तो लाभदायक है परन्तु व्यष्टि के लिए आवश्यक नहीं है, क्योंकि - जीवों में विभिन्नता उनकी स्पीशीज (प्रजाति) की समष्टि को स्थायित्व प्रदान करता है | कोई भी एक समष्टि अपने निकेत के प्रति अनुकूलित होते हैं, परन्तु विषम परिस्थितियों में जब कोई निकेत उनके अनुकूल नहीं रह जाता है तब यही विभिन्नताएँ उनकी समष्टि के समूल विनाश से बचाता है | उनके समष्टि में कुछ ऐसे भी जीव होते है जो उन विषम परिवर्तन का प्रतिरोध कर पाते है और वे जीवित बच जाते है, परन्तु उनके समष्टि से कुछ व्यष्टि मर जाते हैं | अत: विभिन्नताएँ समष्टि की उत्तरजीविता बनाए रखने के लिए लाभदायक है |
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प्रश्न1: द्विखंडन बहुखंडन से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर:
द्विखंडन बहुखंडन 1. इसमें जीव की कोशिकाएँ दो भागों में विभाजित हो जाती है |
2. द्विखंडन में कोशिकाएँ कुछ जीवों जैसे -अमीबा में कोशिका का विभाजन किसी भी तल से हो सकता है जबकि लेस्मानिया जैसे जीवों में कोशिका विभाजन एक निर्धारित तल से होता है |
1. इसमें जीव की कोशिकाएँ अनेक भागों में विभाजित हो जाती है |
2. बहुखंडन में जीव अनेक संतति कोशिकाओं में विभाजित हो जाते है | जैसे - प्लैज्मोडियम |
प्रश्न2: बीजाणु द्वारा जनन से जीव किस प्रकार लाभान्वित होता है ?
उत्तर:
(i) बीजाणु एक विशेष प्रकार का जनन संरचना है | जो बहुत हल्के होते हैं एवं कई कारणों से ये बीजाणु अपने गुच्छ से अलग हो इधर उधर फ़ैल जाते है | ये जीव के जनन भाग होते हैं जो विषम परिस्थतियों में इनकी मोटी भित्ति के कारण सुरक्षित रहते है और नम सतह के संपर्क में आते ही वृद्धि करने लगते हैं | अत: ये अनुकूल परिस्थितियों में ही वृद्धि करते हैं |
प्रश्न3: क्या आप कुछ कारण सोंच सकते हैं जिससे पता चलता हो कि जटिल संरचना वाले जीव पुनरूदभवन द्वारा नयी संतति उत्पन्न नहीं कर सकते ?
उत्तर:
प्रश्न4: कुछ पौधों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग क्यों किया जाता है ?
उत्तर: कुछ पौधों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग किया जाता है |
(i) जिन पौधों में बीज उत्पन्न करने की क्षमता नहीं होती है उनका प्रजनन कायिक प्रवर्धन द्वारा ही किया जाता है |
(ii) इस विधि द्वारा उगाये गए पौधों में बीज बीज द्वारा उगाये गए पौधों की अपेक्षा कम समय में फल और फुल लगने लगते है |
(iii) इस विधि द्वारा उगाये गए पौधों में फल एवं फुल जनक पौधों के समान ही होते है |
प्रश्न5: डी.एन.ए. की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए क्यों आवश्यक है ?
उत्तर: क्योंकि -
(i) डी.एन.ए. की प्रतिकृति का बनना जनन की मूल घटना है जो संतति जीव में जैव विकास के लिए उत्तरदायी होती है |
(ii) कोशिका के केन्द्रक के डी. एन. ए. में प्रोटीन संशलेषण हेतु सुचना निहित होती है | डी.एन.ए. की प्रतिकृति बनने के समय जिस तरह की सूचनाएं प्रतिकृति में शामिल होती है, बनने वाला प्रोटीन भी उसी प्रकार का बनता है |
(iii) भिन्न-भिन्न प्रोटीन के कारण जीवों के शारीरिक अभिकल्प में भी विविधता आ जाती है | संतति कोशिकाएँ समान होते हुए भी किसी न किसी रूप में एक दुसरे से भिन्न होती हैं |
(iv) डी.एन.ए. की प्रतिकृति में मौलिक DNA से कुछ परिवर्तन होता है, मूलत: समरूप नहीं होते अत: जनन के बाद इन पीढ़ियों में सहन करने की क्षमता होती है |
(iii) डी.एन.ए. की प्रतिकृति में यह परिवर्तन परिवर्तनशील परिस्थितियों में जीवित रहने की क्षमता प्रदान करती है |
(iv) डी.एन.ए. की प्रतिकृति में परिवर्तन विभिन्नताएँ लाती है जो जीवों की उत्तरजीविता बनाए रखती है |
(v)
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प्रश्न1: परागण क्रिया निषेचन से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर : परागण क्रिया - (i) परागण से पराग कणों का वर्तिकाग्र तक का परिवहन परागण क्रिया कहलाता है |
(ii) इसमें कोशिकाएँ संलागित नंही होती |
(iii) इस क्रिया को पूर्ण करने के लिए प्राय: वाहकों का इंतजार करता पड़ता है |
निषेचन -
(i) नर व मादा युग्मों का संयोजन निषेचन कहलाता है |
(ii) इसमें नर व मादा कोशिकाएँ संलगित होती है |
(ii) यह क्रिया संव्य होती है |
प्रश्न2: शुक्राणुय एवं प्रोस्टेट ग्रंथि की क्या भूमिका है ?
उत्तर : शुक्राणुय एवं प्रोस्टेट ग्रंथि नर में होती है तथा इनका स्त्राव शुक्राणुओं को पोषण देता है | प्रोस्टेट ग्रंथि भी एक द्रव स्त्रावित करती है | इसी स्त्राव के माध्यम से शुक्राणु मादा जनन तंत्र में स्थानातरित होते है अतः ये जनन क्रिया के लिए महत्वपूर्ण नर ग्रंथियाँ है
प्रश्न3: यौवनारंभ के समय लड़कियों में कौन से परिवर्तन दिखाई देते हैं ?
उत्तर : यौवनारंभ के समय लड़कियों में दिखने वाले परिवर्तन -
(i) जननांगों के आस - पास बाल आना |
(ii) वक्षों के आकार में वृद्धि होना |
(iii) रजोस्त्राव आरम्भ आना |
प्रश्न4: माँ के शरीर में गर्भस्थ भ्रूण को पोषण किस प्रकार प्राप्त होता है ?
उत्तर : भ्रूण माँ के गर्भस्थ में पोषित होता है | माँ के रक्त से पोषण प्रपात करता है | माँ से प्लेसेन्टा नामक ऊतक से जुड़ा होता है तथा इसी के माध्यम से जल , ग्लूकोज , ऑक्सीजन तथा अन्य पोषण तत्व प्राप्त करता है |
प्रश्न5: यदि कोई महिला कॉपर-टी का प्रयोग कर रही है तो क्या यह उसकी यौन-संचारित रोगों से रक्षा करेगा ?
उत्तर : नंही , कॉपर-टी यौन-संचारित रोगों का स्थान्नंतरण नंही रोकती | कॉपर-टी केवल गर्भधारण को रोकती है
अभ्यास : 8 (जीव जनन कैसे करते है )
Q1. अलैंगिक जनन मुकुलन द्वारा होता है |
(a) अमीबा
(b) यीस्ट
(c) प्लैज्मोडियम
(d) लेस्मानिया
उत्तर: (b) यीस्ट
Q2. निम्न में से कौन मानव में मादा जनन तंत्र का भाग नहीं है ?
(a) अंडाशय
(b) गर्भाशय
(c) शुक्रवाहिका
(d) डिम्बवाहिनी
उत्तर: (c) शुक्रवाहिका
Q3. परागकोष में होते हैं -
(a) बाह्यदल
(b) अंडाशय
(c) अंड़प
(d) पराग कण
उत्तर: (d) पराग कण
Q4. अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन के क्या लाभ हैं ?
उत्तर: (i) लैंगिक जनन से अधिक विभिन्नताएँ उत्पन्न होती है जो स्पीशीज के असितत्व के लिए आवश्यक है |
(ii) लैंगिक जनन में दो विभिन्न जीव हिस्सा लेते है | अतः संयोजन अतः अद्भुत होता है |
Q5. मानव में वृषण के क्या कार्य हैं ?
उत्तर : वृषण वृषण कोष में स्थित होते है | वृषण शुक्राणु उत्पन्न करते है | वृषण में टैस्टोस्टीरोन हार्मोन स्त्रवित होता है | वृषण नर जननांगो का अहम हिस्सा है वृषण द्वारा अतिरिक्त के लक्षणों को भी नियंत्रित करता है | वृषण द्वारा स्त्रवित हार्मोन शुक्राणु को पोषण प्रदान करते है इसके अतिरिक्त ये स्त्राव ही शुक्राणुओ के मादा स्थानांतरण में सहायता होते है |
Q6. ऋतुस्राव क्यों होता है ?
उत्तर : अण्डाणु का निषेचन शुक्राणुओं द्वारा होता है ऐसा न होने पर अण्डाणु लगभग एक दिन तक जीवित रहता है | इसके पश्चात गर्भाशय की मोटी तथा स्पंजी दीवार टूटकर रक्त व म्यूक्स में बदल जाती है | यह स्त्राव मादा योनि के रस्ते स्त्रावित हो जाता है | इसे ऋतुस्राव कहते है | यह स्त्राव हर माह होता है |
Q7. पुष्प की अनुदैर्घ्य काट का नामांकित चित्र बनाइए |
उत्तर:
Q8. गर्भनिरोधन की विभिन्न विधियाँ कौन-सी हैं ?
उत्तर: (i) अवरोधक विधियाँ - इन विधियों को शरीर करे बाहर अर्थात ऊपरी त्वचा पर प्रयोग किया जाता है जैसे - नर के लिए कंडोम , मादा के लिए मध्यपट | ये शक्राणु को मादा के अंडोम से नहीं मिलने देती |
(ii) रासायनिक विधियाँ : ये विधियाँ मादा द्वारा प्रयोग में ले जाती है | मादा मुखीय गोलियों द्वारा गर्भधारण को रोक सकती है | मुखीय गोलियों विशेषत : शरीर के हार्मोन्स में बदलाव उत्पन्न कर देती है परन्तु कई बार इनके बुरे प्रभाव भी पड़ जाते है |
(iii) लूप अथवा कॉपर- टी : गर्भशय में स्थापित करके भी गर्भधारण को रोक जा सकता है |
Q9. एक-कोशिक एवं बहुकोशिक जीवों की जनन पद्धति में क्या अंतर है ?
उत्तर: एक - कोशिक जीवों में सरल संरचना होती है अतः उनमें अलैंगिक प्रजनन होता है तथा जनन के लिए विशेष अंग नंही होते | इनमे जनन दो तरह से होता है - द्विखंदन तथा बहुविखंडन | बहुकोशिकीय जीवों में जटिल सरंचना के कारण जनन तंत्र होते है अतः उनमें लैंगिक प्रजनन भी होता है तथा अलैंगिक भी |
Q10. जनन किसी स्पीशीज की समष्टि के स्थायित्व में किस प्रकार सहायक है ?
उत्तर : जनन की मूल रचना DNA की प्रतिर्कति बनाता है | कोशिकाएँ विभिन्न रासायनिक क्रियाएँ DNA की दो प्रतिर्कति बनती है यह जीव की संरचना एंव पैटर्न के लिए उत्तरदायी है DNA की ये प्रतिर्कतियाँ विलग होकर 'विभाजित होती है | व दो कोशिकाओं का निर्माण करती है | इस प्रकार कुछ विभिन्नता आती है जो स्पीशीज के असितत्व के लाभप्रद है |
Q11. गर्भनिरोधक युक्तियाँ अपनाने के क्या कारण हो सकते हैं ?
उत्तर : गर्भधारण युकितयाँ गर्भधारण को रोकने हेतु अपनाई जाती है | जीव प्रजनन क्रिया करते है एंव जीवों की वृद्धि करते है इस प्रकार यदि यह क्रिया निरंतर चलती रहे तो पृथ्वी पर जनसंख्या विस्फोट हो जाए इसके अतिरिक्त गर्भधारण के समय स्त्री के शरीर पर विपरीत प्रभाव पड़ता है | अतः अधिक बार यह क्रिया उसके लिए हानिकारक हो सकती है | इस प्रकार गर्भ निरोधक युकितयाँ परम आवश्यक है |
अतिरिक्त एवं महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर:
प्रश्न 1: डी. एन. ए. प्रतिकृति (COPY) का प्रजनन में क्या महत्व हैं ?
उत्तर : जनन की मूल घटना डी. एन. ए. की प्रतिकृति बनाना है । डी. एन. ए. की प्रतिकृति बनाने के लिए कोशिकाएँ विभिन्न रासायनिक क्रियाओं का उपयोग करती है । जनन कोशिका में इस प्रकार डी. एन. ए. की दो प्रतिकृतियाँ बनती है। जनन के दौरान डी. एन. ए. प्रतिकृति का जीव की शारीरिक संरचना एवं डिजाइन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जो विशिष्ट निकेत के योग्य बनाती है ।प्रश्न 2: जीवों में विभिन्नता स्पीशीज के जीवित रहने के लिए किस प्रकार उतरदायी हैं?
उत्तर : जीवों में विभिन्नता ही उन्हें प्रतिकूल परिस्थितियों में बने रहने में सहायक हैं। शीतोष्ण जल में पाए जाने वाले जीव़ परिस़्िथतिक तं़त्ऱ के अनुकुल जीवित रहते है। यदि वैश्विक उष्मीकरण के कारण जल का ताप बढ जाता हैं तो अधिकतर जीवाणु मर जाएगें, परन्तु उष्ण प्रतिरोधी क्षमता वाले कुछ जीवाणु ही खुद को बचा पाएगें और वृद्धि कर पाएगें । अतः जीवों में विभिन्नता स्पीशीज की उतरजीविता बनाए रखने में उपयोगी हैं ।
प्रश्न 3: शरीर का अभिकल्प समान होने के लिए जनन जीव के अभिकल्प का ब्लूप्रिंट तैयार करता है। परन्तु अंततः शारीरिक अभिकल्प में विविधता आ ही जाती है। क्यों?
उत्तर : क्योंकि कोशिका के केन्द्रक में पाए जाने वाले गुणसूत्रों के डी. एन. ए. के अणुओं में आनुवांशिक गुणों का संदेश होता है जो जनक से संतति पीढी में जाता है । कोशिका के केन्द्रक के डी. एन. ए. में प्रोटीन संश्लेषण के लिए सूचना निहित होती हैं इस सूचना के भिन्न होने की अवस्था में बनने वाली प्रोटीन भी भिन्न होगी । इन विभिन्न प्रोटीनों के कारण अंततः शारीरिक अभिकल्प में विविधता आ ही जाती है।प्रश्न 4: डी. एन. ए. की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए आवश्यक क्यो है ?
उत्तर : डी. एन. ए. की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए आवश्यक हैं क्योंकि-
(1) डी. एन. ए. की प्रतिकृति संतति जीव में जैव विकास के लिए उतरदायी होती हैं ।(2) डी. एन. ए. की प्रतिकृति में मौलिक डी. एन. ए. से कुछ परिवर्तन होता है मूलतः समरूप नहीं होते अतः जनन के बाद इन पीढीयों में सहन करने की क्षमता होती है ।
(3) डी. एन. ए. की प्रतिकृति में यह परिवर्तन परिवर्तनशील परिस्थितियों में जीवित रहने की क्षमता प्रदान करती है ।
प्रश्न 5: कुछ पौधें को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग क्यों किया जाता है ?
या
प्रश्न 5: कायिक प्रवर्धन के लाभ लिखिए ।
उत्तर : कुछ पौधें को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग करने के कारण निम्न हैं ।
(1) जिन पौधों में बीज उत्पन्न करने की क्षमता नहीं होती है उनका प्रजनन कायिक प्रवर्धन विधि के द्वारा ही किया जाता हैं ।
(2) इस विधि द्वारा उगाये गये पौधे में बीज द्वारा उगाये गये पौधों की अपेक्षा कम समय में फल और फूल लगने लगते है।
(3) पौधों में पीढी दर पीढी अनुवांशिक परिवर्तन होते रहते हैं । फल कम और छोटा होते जाना आदि, जबकि कायिक प्रवर्धन द्वारा उगाये गये पौधों जनक पौधें के समान ही फल फूल लगते हैं ।प्रश्न 6: निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दीजिए:
(i) यौवनारंभ क्या है ?
(ii) यह किन शारीरीक परिवर्तनों के साथ शुरू होता है ?
(iii) लडके तथा लडकी में यौवनारंभ कब शुरू होता है ।
(iv) यौवनावस्था के लक्षणों को नियंत्रित करने वाले नर तथा मादा हार्मोनो के नाम लिखिए ।
उत्तर :
(i) किशोरावस्था की वह अवधि जिसमें जनन उतक परिपक्व होना प्रारंभ करते है । यौवनारंभ कहा जाता है ।
(ii) लड़कों तथा लडकियों में यौवनारंभ निम्न शारिरिक परिवर्तनों के साथ आरंभ होता है ।
लडकों में - दाढ़ी मूँछ का आना , आवाज में भारीपन, काँख एवं जननांग क्षेत्र में बालों का आना , त्वचा तैलिय हो जाना, आदि ।लडकियों में - स्तन के आकार में वृद्धि होना, आवाज में भारीपन, काँख एवं जननांग क्षेत्र में बालों का आना , त्वचा तैलिय हो जाना, और रजोधर्म का होने लगना , जंघा की हडियो का चौडा होना, इत्यादि।
आदि ।
(iii) लडकियों में यौवनारंभ 12 - 14 वर्ष में होता है जबकि लडको में यह 13 - 15 वर्ष में आरंभ होता है ।
(iv) नर हार्मोन - टेस्टोस्टेरॉन
मादा हार्मोन - एस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्ट्रोनप्रश्न 7: पुष्पी पादप में निषेचन प्रक्रिया को समझाने के लिए बिजाण्ड का नामांकित चित्र बनाइए तथा निषेचन की प्रक्रिया को लिखे ।
उत्तर : पौधे में परागण के बाद निषेचन होता हैं। जब परागकण वर्तिकाग पर एकत्रित हो जाते है। परागनलिका बीजांड में एक सूक्ष्म छिद्र द्वारा प्रवेश करती है जिसे बीजांडद्वार कहते है | परागनलिका से दो पुंयुग्मक भ्रुणकोष में प्रवेश करते हैं भ्रूणकोष में अंड रहता हैं। नर तथा मादा युग्मको का यह संलयन युग्मक संलयन कहलाता हैं जिसको निषेचन कहते है। तथा इससे युग्मनज बनता है। निषेचन के बाद अंडाशय फल में तथा बीजांड बीज में विकसित होते है।प्रश्न 8: दोहरा निषेचन क्या है ?
उत्तर : पुष्पी पादप में संलयन क्रिया में तीन केंद्रक होते है एक युग्मक तथा दो ध्रुविय केन्द्रक । अत: प्रत्येक भ्रूणकोष में दो संलयन, युग्मक - संलयन तथा त्रिसंलयन होने की क्रिया विधि को दोहरा निषेचन कहते है।
प्रश्न 9: मानव में नर तथा मादा जननांग क्या है ? प्रत्येक का कार्य लिखो ।
उत्तर : मानव में नर जननांग का नाम वृषण है तथा मादा जननांग का नाम अंडाशय है।वृषण का कार्य शुक्राणु उत्पन्न करना तथा नर हॉर्मोन टेस्टोस्टीरोन का स्राव करना है जबकि अंडाशय का कार्य अंडाणु उत्पन्न करना तथा मादा हॉर्मोन एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्ट्रॉन का स्राव करना है।
प्रश्न 10: आर्वत-चक्र के मध्य में यदि मैथुन सम्पन्न हो तभी निचेषन संभव हैैं। कारण स्पष्ट किजिए।
उत्तर : आर्वत-चक्र के मध्य में यदि मैथुन सम्पन्न हो तभी निचेषन संभव हैैं। कारण स्पष्ट है क्योकि आर्वत - चक्र के मध्य में अंडाशय से अंडाणु का उत्सर्जन होता है। अंडोत्सर्ग चक्र के 11वें से 16 वें दिन के बीच होता है। इसी आवर्त-चक्र के मध्य में अंडाणु गर्भाशय में उपस्थित रहता है निषेचन के लिए अंडाशय में अंडाणु का उपस्थित होना आवश्यक है।
प्रश्न 11: शिशु जन्म नियंत्रण की विधियो का वर्णन करो ।
उत्तर :(i) रोधिका विधि - रोधिका विधियो में कंडोम, मध्यपट, और गर्भाशय ग्रीवा जैसी भौतिक विधियों का उपयोग होता है।
(ii) रासायनिक विधि - महिलाओ द्वारा गर्भ नियंत्रण हेतु विशिष्ट औषधियो का उपयोग ही रासायनिक विधि कहलाती है। जैसे -गर्भ निरोधक गोलिया माला - डी आदी।
(iii) शल्य क्रिया विधि - शल्य क्रिया में पुरूष नसबंदी (वासेक्टॉमी) तथा स्त्रियों में स्त्रिनसबंदी को (ट्बेकटॉमी) कहते है।(iv) IUCD (Intra Uterine Contraceptive Devices) - इस विधि के अंतर्गत कॉपर-टी जैसी युक्तियों का प्रयोग किया जाता है जो एक विशेष सिद्धांत पर कार्य करता है और निचेचन की क्रिया को रोक देता है |
प्रश्न 12: IUCD, HIV, AIDS, और OC को विस्तारपूर्वक लिखिए।
उत्तर : IUCD - इन्टरायुटेराइन कॉन्ट्रासेवटिव डिवाइसेज।
HIV - ह्युमन इम्युनो वाइरस।
AIDS - एक्वायर्ड इम्युनो डेफिसेंसी सिड्रोंम।
OC - ओरल कॉन्ट्रासेवटिव ।प्रश्न 13: जन्म नियंत्रण की शल्य विधि का वर्णन करो ।
उत्तर : शल्य क्रिया में पुरूष नसबंदी (वासेक्टॉमी) तथा स्त्रियों में स्त्रिनसबंदी को (ट्युबेकटॉमी) कहते है। पुरूष नसबंदी (वासेक्टॉमी) - इसमें वास डिफ्रेस नामक नली को शल्य क्रिया द्वारा काट कर अलग कर दिया जाता है। स्त्रिनसबंदीे (ट्बेकटॉमी) - इसमें फैलोपियन ट्युब नामक नली को शल्य क्रिया द्वारा काट कर अलग कर दिया जाता है।
प्रश्न - लैंगिक संचारित रोगों को परिभाषित किजिए और इनके दो उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर - कुछ संक्रामक रोग लैंगिक संसर्ग द्वारा एक संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति तक फैलते है। ऐसे रोगों को लैंगिक संचारित रोग (ैज्क्) कहते है। जैसे - सुजाक;गोनिरिया),आशतक;सिफिलिस) और एड्स भी लैंगिक संचारित रोग है।
प्रश्न - आर्वत चक्र का वर्णन करो ं।
उत्तर - प्रत्येक 28 दिन बाद अंडाशय तथा गर्भाशय में होनें वाली घटना ऋतुस्राव द्धारा चिन्हित होती है तथा आर्वत चक्र या स्त्रियों का लैगिक चक्र कहलाती है।
प्रश्न - द्वि-विखंडन तथा बहु- विखंडन में अंतर बताइए।
उत्तर - जब एक कोशिकिय जीव से दो नए जीवों की उत्पति होती है। अत: इसे द्वि-विखंडन कहते है। बहु-विखंडन में पहले केंद्रकिय विभाजन होता है। जनक कोशिका के कोशिकाद्रव्य का छोटा सा खण्ड संतति केंद्रक के चारो ओर बाह्य झिल्ली का निर्माण करता है। जितनी संतति कोशिका होती हैं उतनी संतति जीव बनते है। इस प्रकार के विखंडन को बहु-विखंडन कहते है।
प्रश्न - ऊतक संवर्धन तकनीक क्या है ? इस तकनीक का उपयोग किस प्रकार के पौधों संवर्धन के लिए किया जाता है।
उत्तर - ऊतक संवर्धन तकनीक में पौधों के ऊतक अथवा उसकी कोशिकाओं को पौधे के शीर्ष के वर्धमान भाग से पृथक कर नए पौधे उगाए जाते है । ऊतक संवर्धन तकनीक द्वारा सिधी एकल पौधे से अनेक संक्रमण मुक्त परिस्थितियों में उत्पन्न किए जाते हैं। इस तकनीक का उपयोग सामान्यत: सजावटी पौधों के संवर्धन में किया जाता है ।प्रश्न - किन्हीं तीन उभयलिंगी जीवों के नाम लिखिए।
उत्तर - 1. फीताकृमि 2. केंचुआ 3. सितारा मछली ।
प्रश्न - भ्रूण अपना भोजन किस प्रकार प्राप्त करता है ?
उत्तर - अपरा ( प्लासेंटा से ) प्र0- नर तथा मादा जननांगो के नाम लिखो ।
उ0- नर में वृषण होता है जो शुक्राणुओ को उत्पन्न करता है।
मादा में अंडाशय होता है जो अंडाणुओ को उत्पन्न करता है।
प्र0- निषेचन किसे कहते हैं ?
उ0- नर युग्मक शुक्राणु तथा मादा युग्मक अंडाणु दोनो युग्मको के
संलयन की क्रिया को निषेचन कहते हैं।
प्र0- बाह्य निषेचन क्या है ?
उ0- मछलियो तथा उभयचरो में निषेचन समान्यत: शरीर के बाहर
होता हैं। अत: इसे बाह्य निषेचन कहते हैं।
प्र0- रजोदर्शन तथा रजोनिवृति में अंतर स्पष्ट किजिए ।
उ0- रजोदर्शन - यौवनारंभ के समय रजोधर्म के प्रारंभ को
रजोदर्शन कहते है।
यह 12 से 14 वर्ष की आयु की युवतियो में प्रारंभ होता हैं ।
रजोनिवृति - जब स्त्रियो के रजोधर्म 50 वर्ष की आयु में
ऋतुस्राव तथा अन्य धटना चक्रो की समाप्ती रजोनिवृति
कहलाती है।प्र0- परागण किसे कहते है ? इसके विभिन्न प्रकारो का नाम लिखो ।
उ0- परागकणों का परागकोष से वर्तिकाग्र तक के स्थानान्तरण को परागण कहते है।
परागण दो प्रकार के होते है।
1. स्व - परागण
2. परा - परागण
प्र0- स्व - परागण किसे कहते है ?
उ0- एक पुष्प के परागकोष से उसी पुष्प के अथवा उस पौधे के अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र तक परागकणो का स्थानान्तरण स्व - परागण कहलाता है।
प्र0- परा - परागण किसे कहते है।
उ0- एक पुष्प के पराकोष से उसी जाति के दूसरे पौधे के पुष्प के वर्तिकाग्र तक परागकणो का स्थानान्तरण परा - परागण कहलाता है
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