क्या भारत की विदेश नीति से यह झलकता है कि भारत क्षेत्रीय
तर की महाशक्ति बनना चाहता है ? 1971 के बांग्लादेश युद्ध के सन्दर्भ में इस प्रश्न
विचार करें।
ans. भारत की विदेश नीति से यह बिल्कुल नहीं झलकता है कि भारत क्षेत्रीय महाशक्ति बनना चाहता है। 1971 का बांग्लादेश इस बात को बिल्कुल साबित बांग्लादेश के निर्माण के लिए स्वयं पाकिस्तान की पूर्वी पाकिस्तान के प्रति उपेक्षापर्ण बंगालियों की अपनी भाषा, संस्कृति के प्रति अटूट प्यार और उसे यह पूर्ण यकीन था कि एक शांतिप्रिय देश है। वह शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की नीतियों में विश्वास करता आया है और भविष्य में भी करेगा।
भारत ने आज तक बांग्लादेश पर न आक्रमण किया और न वह सोच रहा के साथ मामूली मामलों को छोड़कर भारत के साथ अच्छे संबंध हैं।
___चीन भी यह मानता है कि भारत अब 1962 का भारत नहीं है। पाकिस्तान पार भारत एक बड़ी शक्ति बनता जा रहा है। उसका कारण है यहाँ के प्राकृतिक संसाधन पंचशील, निशस्त्रीकरण, गुटनिरपेक्षता आदि सिद्धांतों पर टिकी उसकी विदेश नीति। भार महावीर स्वामी 'जियो और जीने दो' के सिद्धांत पर यकीन करता है लेकिन वह कायरों का बल्कि वह वीरों और वीरांगनाओं का देश है जिसकी गवाही न केवल स्वामी राजस्थानियों का मराठों का बल्कि स्वतंत्र भारत का 1857 से लेकर आज 2020 तक इतिहास गवाही दे रहा है।
किसी राष्ट्र का राजनीतिक नेतृत्व किस तरह राष्ट्र की विदेश नीति पर अया डालता है ? भारत की विदेश नीति के उदाहरण देते हुए इस प्रश्न पर विचार कीजिए।
Ans. हर देश का राजनैतिक नेतृत्व उस राष्ट्र की विदेश नीति पर प्रभाव डालता है। उदाहरण के लिए नेहरूजी के सरकार के काल में गुट निरपेक्षता की नीति बड़ी जोर-शोर में चली
लेकिन शास्त्रीजी ने पाकिस्तान को ईंट का जवाब पत्थर से देकर यह साबित कर दिया कि भारत की तीनों तरह की सेनाएँ हर दुश्मन को जवाब देने की ताकत रखती है। उन्होंने स्वाभिमान से जीना सिखाया। ताशकंद समझौता किया लेकिन गुटनिरपेक्षता की नीति को नेहरू जी के समान जारी रखा।
कहने को श्रीमती इंदिरा गाँधी नेहरूजी की पुत्री थीं लेकिन भावनात्मक रूप से वह रूस से अधिक प्रभावित थीं। उन्होंने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। भूतपूर्व देशी नरेशों के प्रिवीपर्स पर्स समाप्त किए, 'गरीबी हटाओ' का नारा दिया और रूस से दीर्घ अनाक्रमांक संधि की।
राजीव गाँधी के काल में चीन पाकिस्तान सहित अनेक देशों से संबंध सुधारे गए तो श्रीलंका के उन देशद्रोहियों को दबाने में वहाँ की सरकार को सहायता देकर यह बता दिया कि भारत छोटे-बड़े देशों की अखंडता का सम्मान करता है।
कहने को एन० डी० ए० या बी० जे० पी० की सरकार कुछ ऐसे तत्वों से प्रभावित थी जो साम्प्रदायिक अक्षेप से बदनाम किए जाते हैं लेकिन उन्होंने भारत को चीन, रूस, अमेरिका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस आदि सभी देशों से विभिन्न क्षेत्रों से समझौते करके बस, रेल, वायुयान, उदारीकरण उन्मुक्त व्यापार, वैश्वीकरण और आतंकवादी विरोधी नीति को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पड़ोसी देशों में उठाकर यह साबित कर दिया कि भारत की विदेश नीति केवल देश हित में होगी, उस पर धार्मिक या किसी राजनैतिक विचारधारा का वर्चस्व नहीं होगा।
अटल बिहारी वाजपेयी की विदेश नीति, नेहरूजी की विदेश नीति से जुदा न होकर लोगों को अधिक प्यारी लगी क्योंकि देश में परमाणु शक्ति का विस्तार हुआ, जय जवान के साथ आपने दिया नारा 'जय जवान जय किसान और जय विज्ञान'।
यूरोपीय संघ की सैनिक ताकत का मूल्यांकन कीजिए।
Ans. यूरोपीय संघ की सैनिक ताकत का मूल्यांकन-(i) सैनिक ताकत के हिसाब से यूरोप संघ विश्व की सबसे बड़ी सेना है।
(ii) इसका कुल रक्षा बजट अमेरिका के बाद सबसे अधिक है।
(iii) यूरोपीय संघ के दो देशों-ब्रिटेन और फ्रांस के पास परमाणु हथियार हैं और अनुमान है कि इनके जखीरे में लगभग 550 परमाणु हथियार हैं।
(iv) अंतरिक्ष विज्ञान और संचार प्रौद्योगिकी के मामले में भी यूरोपीय संघ का विश्व में दूसरा स्थान है।
यूरोपीय संघ के सदस्य राष्ट्रों में किन बातों को लेकर मतभेद है ?
Ans. यूरोपीय संघ के सदस्य राष्ट्रों में मतभेद-(i) अधिराष्ट्रीय संगठन के तौर पर यूरोपीय संघ आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक मामलों में दखल देने में सक्षम है। परंतु अनेक मामलों में इसके सदस्य देशों की अपनी विदेश और रक्षा नीति है जो कई बार एक-दूसरे के खिलाफ होती है।
(ii) इराक पर अमेरिकी हमले में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर तो उसके साथ थे लेकिन जर्मनी और फ्रांस इसके खिलाफ थे।
(iii) यूरोपीय संघ के कई नए सदस्य देश भी अमेरिकी गठबंधन में थे।
(iv) यूरोप के कुछ भागों में यूरो को लागू करने के कार्यक्रम को लेकर काफी नाराजगी है। यही कारण है कि ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर ने ब्रिटेन को यूरोपीय बाजार से अलग रखा।
(v) डेनमार्क और स्वीडन ने मास्ट्रिस्ट संधि और साझी यूरोपीय मुद्रा यूरो को मानने का प्रतिरोध किया। इससे विदेशी और रक्षा मामलों में काम करने की यूरोपीय संघ की क्षमता सीमित होती है।
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