परिवार कल्याण कार्यक्रम पर लेख, Write on Article on family Welfare program.

परिवार कल्याण कार्यक्रम पर लेख, Write on Article on family Welfare program. 


हमारे देश में 1960 के दशक के शुरू में एक आधिकारिक परिवार नियोजन कार्यक्रम लागू किया था। विश्व में ऐसा करने वाला भारत पहला देश था। मगर सरकार के लाख प्रयासों और देश के बजट का एक बड़ा भाग खर्च करने के बावजूद इस क्षेत्र में वांछित परिणाम हासिल नहीं किये जासके। अनेक स्तरों पर अध्ययन और विश्लेषण के बाद किसी खास नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका। कहीं सरकार के स्तर पर तो कहीं आम आदमी की कमजोरियों को रेखांकित किया गया। देश की आबादी भी आजादी के बाद चार गुना बढ़ गई। यह भी सत्य है कि देश में परिवार कल्याण कार्यक्रमों को लागू करने वाली सरकारी एजेंसियां गंभीर नहीं हैं। आजादी के 70 वर्षों के बाद भी कहीं भवन का अभाव है तो कहीं पर्याप्त चिकित्सा कर्मी नहीं हैं। यदि दोनों हैं तो नसबंदी करने वाली महिला या पुरुष को भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है। प्रोत्साहन राशि में भी गड़बड़ी की शिकायतें हैं। असंवेदनशीलता की बातें भी सुनने और पढ़ने को मिल जाती हैं। ऐसी स्थिति में विशेषकर गरीब जनता सरकारी अस्पतालों में जाने से हिचकिचाती है। सरकार के स्तर पर खानापूर्ति और लक्ष्य प्राप्ति पर ही अधिक ध्यान दिया जाता है जिसके कारण जनसँख्या नियंत्रण के हमारे उपाय आधे अधूरे रह जाते हैं। नकारात्मक खबरों के प्रकाशन से भी परिवार कल्याण अभियान को धक्का पहुंचा है।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने सरकार के जनसंख्या नियंत्रण के उपायों की पोल खोलते हुए कहा है कि देश के चौदह राज्यों के 300 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में से 40 फीसदी में नसबंदी की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। कैग ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत प्रजनन और शिशु स्वास्थ्य सुविधाओं के संबंध में 2012 से 2017 की अवधि में की गई जांच पर संसद में पेश रिपोर्ट में यह खुलासा किया है। यह रिपोर्ट ऐसे समय आयी है जब सरकार ने देश में प्रजनन दर घटाने के लिए परिवार विकास जैसा व्यापक अभियान चला रखा है। रिपोर्ट में महिला और पुरुषों के बीच नसबंदी के मामलों में भी भारी अंतर का खुलासा करते हुए कहा गया है कि 28 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में कुल नसबंदी के मामलों में पुरुष नसबंदी का अनुपात महज 2.3 प्रतिशत पाया गया है। इसमें नसंबदी के लिए दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि तथा दोषपूर्ण नसबंदी या फिर नसबंदी से होने वाली मृत्यु के मामलों में क्षतिपूर्ति भुगतान में भी कई विसंगतियों की बात कही गई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अरुणाचल प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और पंजाब में औसत 63 फीसदी में यह सुविधा नहीं है। यह भी कहा गया है कि अंडमान निकोबार द्वीप समूह, केरल, मणिपुर, मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा में किसी भी चयनित सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में महिला और पुरुष नसबंदी की सुविधा मौजूद नहीं होने की बात कही गई है। कैग ने इस संबंध में अपने सुझावों में कहा है कि प्रत्येक स्वास्थ्य केन्द्र में नसबंदी के साथ ही परिवार नियोजन के सभी साधनों की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए। नसबंदी के आपरेशन सही चिकित्साकर्मियों की देख रेख में होने चाहिए ताकि किसी तरह की जटिलताएं न पैदा हों। परिवार नियोजन के उपायों के लिए दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि या क्षतिपूर्ति राशि का बंटवारा सुसंगत तरीके से करने की व्यवस्था होनी चाहिए।

इस समय भारत की आबादी लगभग एक अरब 29 करोड़ है। भारत में बढ़ती आबादी चिंतनीय है। सरकार ने आजादी के बाद से ही देश की आबादी कम करने के लिए कई उपाय किये हैं। इनमें परिवार नियोजन कार्यक्रम प्रमुख है। 1960 के दशक के शुरू में भारत ने एक आधिकारिक परिवार नियोजन कार्यक्रम लागू किया। विश्व में ऐसा करने वाला भारत पहला देश था। मगर सरकार के लाख प्रयासों के बावजूद इस क्षेत्र में वांछित परिणाम हासिल नहीं किये जा सके। जन्म दर को कम करके जनसंख्या वृद्धि में कटौती करने को ही आम तौर पर जनसँख्या नियंत्रण माना जाता है। आजादी के समय भारत की जनसंख्या 33 करोड़ थी जो आज चार गुना तक बढ़ गयी है। परिवार नियोजन के कमजोर तरीकों, अशिक्षा, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के अभाव, अंधविश्वास और विकासात्मक असंतुलन के चलते आबादी तेजी से बढ़ी है। संभावना है कि 2050 तक देश की जनसंख्या 1.6 अरब हो जायेगी। फिलहाल भारत की जनसंख्या विश्व जनसंख्या का 17.46 फीसद है। भूभाग के लिहाज के हमारे पास 2.5 फीसद जमीन है। 4 फीसद जल संसाधन है। जबकि विश्व में बीमारियों का जितना बोझ है, उसका 20 फीसद अकेले भारत पर है।

जनसंख्या वृद्धि पर काबू पाना किसी भी सरकार के लिए सरल नहीं होता। हमारे देश में निर्धनता, अंधविश्वास, अशिक्षा, धार्मिक विश्वास, भ्रामक धारणाएँ और स्वास्थ्य के प्रति अवैधानिक दृष्टिकोण जनसंख्या वृद्धि के कारण हैं। जनसंख्या में वृद्धि होने के साथ−साथ प्राकृतिक संसाधनों पर और भार बढ़ जाएगा। जनसंख्या दबाव के कारण कृषि के लिए व्यक्ति को भूमि कम उपलब्ध होगी जिससे खाद्यान्न, पेय जल की उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, इसके अलावा लाखों लोग स्वास्थ्य और शिक्षा के लाभों एवं समाज के उत्पादक सदस्य होने के अवसर से वंचित हो जाएंगे।

राजस्थान में मातृ एवं स्वास्थ्य सेवाओं के लिए पैरवी करने वाले संगठन सुमा द्वारा फरवरी 2017 में राजस्थान के 14 जिलों में लगभग दो हजार परिवारों से गर्भधारण और गर्भनिरोध से सम्बंधित प्राप्त जानकारियों के अनुसार लगभग 44 प्रतिशत दम्पतियों ने कहां कि तब तक गर्भ निरोध के साधन का इस्तेमाल नहीं करना चाहते जब तक पुत्र की प्राप्ति नहीं हो जाती। पुत्र की चाहत महिलाओं को बार−बार गर्भ धारण करने के लिए बाध्य करती है, कम उम्र में कम अंतराल में अनेक गर्भ धारण होने से मां और बच्चे दोनों की मृत्यु होने की सम्भावना बढ़ जाती है। परिवार नियोजन कार्यक्रमों में पुत्र की चाह को ध्यान में रखते हुए सामाजिक बदलाव के प्रयास करने भी जरूरी हैं।

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