ans 1. पारंपरिक धारणा के अनुसार किसी देश की सुरक्षा आंतरिक शांति और कानून व्यवस्था बित होती है। अगर किसी देश के भीतर रक्तपात हो रहा हो अथवा होने की आशंका हो तो
सरक्षित कैसे हो सकता है? यह बाहर के हमलों से निपटने की तैयारी कैसे करेगा जबकि खद अपनी सीमा के भीतर सुरक्षित नहीं है ? इसी कारण सुरक्षा की परंपरागत धारणा का जरूरी अंदरूनी
सुरक्षा से भी है।
2. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से इस पहलू पर ज्यादा जोर नहीं दिया गया तो इसका कारण यही था कि दुनिया के अधिकांश ताकतवर देश अपनी अंदरूनी सुरक्षा के प्रति कमोबेश आश्वस्त थे। हमने पहले कहा था कि संदर्भ और स्थिति को नजर में रखना जरूरी है। आंतिरक सुरक्षा ऐतिहासिक रूप से सरकारों का सरोकार बनी चली आ रही थी लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के बाद ऐसे हालात और संदर्भ सामने आये कि आंतिरक सुरक्षा पहले की तुलना में कहीं कम महत्त्व की चीज बन गई।
3. सन् 1945 के बाद ऐसा जान पड़ा कि संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ अपनी सीमा के अंदर एकीकृत और शांति संपन्न है। अधिकांश यूरोपीय देशों, खासकर ताकतवर पश्चिमी मुल्कों के सामने अपनी सीमा के भीतर बसे समुदायों अथवा वर्गों से कोई गंभीर खतरा नहीं था। इस कारण इन देशों ने अपना ध्यान सीमापार के खतरों पर केन्द्रित किया।
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