देश की स्वतंत्रता के उपरांत विकास के स्वरूप एवं इससे जुड़े नीतिगत निर्णयों के बारे में किस सीमा तक टकराव था ? क्या यह टकराव आज भी जारी है ? संक्षेप में समझाइए।

 देश की स्वतंत्रता के उपरांत विकास के स्वरूप एवं इससे जुड़े नीतिगत निर्णयों के बारे में किस सीमा तक टकराव था ? क्या यह टकराव आज भी जारी है ? संक्षेप में समझाइए।

Ans. राजनीतिक टकराव एवं विकास-(i) भारत 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र हुआ। आजादी के बाद अपने देश में ऐसे कई फैसले लिए गए। इनमें से कोई भी फैसलों से मुँह फेरकर नहीं लिया जा सकता था। सारे के सारे फैसले आपस में आर्थिक विकास के एक मॉडल या यों कहें कि एक 'विजन' से बँधे हए थे।

(ii) लगभग सभी इस बात पर सहमत थे कि भारत के विकास का अर्थ आर्थिक संवद्धि और आर्थिक-सामाजिक न्याय दोनों है। इस बात पर भी सहमति थी कि इस मामले को व्यवसायी, उद्योगपति और किसानों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है।

(iii) सरकार को इस मसले में प्रमुख भूमिका निभानी थी। जो भी हो, आर्थिक-संवृद्धि हो और सामाजिक न्याय भी मिले-इसे सुनिश्चित करने के लिए सरकार कौन-सी भूमिका (पूर्णतया सक्रिय या पूर्णतया निष्क्रय) निभाए? इस सवाल पर मतभेद थे। क्या कोई ऐसा केन्द्रीय संगठन (अर्थात् योजना आयोग) जरूरी है जो देश के लिए योजना बनाए? क्या सरकार को कुछ महत्वपूर्ण उद्योग और व्यवसाय खुद (सार्वजनिक क्षेत्र) चलाने चाहिए? अगर सामाजिक न्याय संवृद्धि की जरूरतों के आड़े आता हो तो ऐसी सूरत में सामाजिक न्याय पर कितना जोर देना उचित होगा?

(iv) उपर्युक्त प्रत्येक सवाल पर टकराव हुए जो आज तक जारी है। जो फैसले लिए गए उनके राजनीतिक परिणाम सामने आए। इनमें से अधिकतर मसलों पर राजनीतिक रूप से कोई फैसला लेना ही था और इसके लिए राजनीतिक दलों से विचार-विमर्श करना जरूरी था, साथ ही जनता की स्वीकृति भी हासिल करनी थी।

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